संघर्ष का क्या मतलब है और संघर्ष किस प्रकार करना चाहिए, यह बात भी महत्वपूर्ण है। व्यक्ति कोई भी लक्ष्य लेकर उसे पूरा करने के लिए अपने कार्य का निर्धारण करता है। उस निर्धारित किए गए कार्य से जब वह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है, तो उसे अपने प्रयासों और बढ़ाना पड़ता है। उसके बाद भी लक्ष्य पूरा नहीं होता है, तो कुछ विशेष करने के लिए सोचना पड़ता है। ऐसे निर्णय भी लेने पड़ते हैं, जिनको लेने के लिए मन पहले तैयार नहीं था। यह प्रक्रिया जितनी ज्यादा बार चलती है, उतना ही वह संघर्ष कहलाता है। मन कार्य के प्रति सहज रूप से तैयार हो जाता है, तो संघर्ष का आभास नहीं होता है और मन को तैयार करने में जितनी ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है, उतना ही संघर्ष का आभास ज्यादा होता है। जो कार्य व्यक्ति की क्षमता में हो, वहां तक कार्य करना भी संघर्ष नहीं कहलाता है, लेकिन जब क्षमताओं को और बढ़ाएं बिना वह कार्य संभव नहीं हो पा रहा हो, तो वह संघर्ष का आभास देता है। किसी के जीवन में बार-बार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जिनमें वह अपना काफी कुछ खो देता है। फिर से उसे नया खड़ा करना पड़ता है, वह स्थिति भी संघर्ष पूर्ण स्थिति कहलाती ह
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