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Showing posts from January, 2020

मानव जन्म अनमोल है इसे व्यर्थ न जाने दें। Manav janm Anmol hai ise vyarth na jaane de.

जीवन पूरा करने के लिए या दिन खींचने के लिए जीवन जीने वाले व्यक्ति ने अपने जीवन को पूरी तरह समझा ही नहीं है। उसने अपनी जीवन की कीमत समझी ही नहीं है। मानव संसार के सब अन्य प्राणियों की अपेक्षा कुछ विशेषता वाला प्राणी है। उसका जीवन अन्य सबसे ऊंचा है। इस विषय में कोई मतभेद नहीं है। मानव जीवन में बाल्यकाल पराधीन और अज्ञान दशा में भी जाता है, यह बात उस समय समझ में नहीं आती है। तदापि उस बाल्यकाल में निर्दोष सरलता तथा हृदय की स्वच्छता दृष्टिगत होती है। बाल्यकाल बीतने के बाद युवक बने हुए मानव में अनेक प्रकार की हवाओं का प्रवेश होता है। सरलता लगभग समाप्त हो जाती है। स्वच्छंदता, उद्धंतता, दंभ कृत्रिमता आदि दूषण मानव के जीवन में अपना स्थान बना लेते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि प्रोढ या वृद्ध अवस्था आने पर भी वह मानव अपने जीवन में प्रविष्ट हो चुके उन अनिष्टों के सामने निरूपाय बनकर अपने जीवन को बर्बाद कर लेता है। आज अन्य जीवों की अपेक्षा ऐसे मनुष्यों का भार संसार में बढ़ रहा है। मानव का त्रास, उसके पाप, उसके अन्याय, उसके असत्य के आचरण और दंभ ने पृथ्वी को अत्यंत भारभूत बना दिया है। जंगल के जंगली

सर्व सिद्धिदायक णमोकार महामंत्र sarv siddhi dayak namokar mahamantra

यह सभी अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला महामंत्र है। आत्मा शोधन हेतु होते हुए भी नित्य जाप करने वाले के रोग,शोक,आदि, व्याधि आदि सभी बाधाएं दूर हो जाती है, पवित्र, अपवित्र, रोगी, दुखी, सुखी आदि किसी भी अवस्था में इस महामंत्र के जाप करने से समस्त पाप भस्म हो जाते हैं तथा अंदर से व बाहर से मन पवित्र हो जाता है। यह समस्त विघ्नों को दूर करने वाला तथा समस्त मंगलों में प्रथम है। किसी भी कार्य के आदि में इसके स्मरण करने से वह कार्य निर्विघ्न तथा पूर्ण हो जाता है। त्रियंच, पशु ,पक्षी जो मांसाहारी है जैसे सर्प जीवन में हजारों तरह के पाप करते हैं, अनेक प्राणियों की हिंसा करते हैं मांसाहारी होते हैं तथा उनमें क्रोध, मान, माया, लोभ कषायों की तीव्रता होती है, फिर भी अंतिम समय में किसी दयालु द्वारा णमोकार मंत्र का श्रवण कराने मात्र उस त्रियंच पर्याय का त्याग कर स्वर्ग देव गति को प्राप्त होते हैं। णमोकार मंत्र के एक अक्षर का भाव सहित स्मरण करने से सात साल तक भोगे जाने वाले पापों का नाश हो जाता है और समस्त मंत्र का भाव सहित जाप करने तथा विधि पूर्वक स्मरण करने पर अभागा प्राणी स्वर्गोदी सुखों को प्राप्त करता

कलयुग में सत्संग ही भवपार लगा सकता है। Kalyug mein satsang hi bhav paar Laga sakta hai.

एक मजदूर था, और संतों का प्यारा था ,सत्संग का प्रेमी था, उसने एक प्रतिज्ञा की थी, कि जब भी किसी का सामान उठाएगा या उसकी मजुरी करेगा तब उस यजमान को वह सत्संग सुनाएगा या उस यजमान से वह सत्संग सुनगा । मजदूरी करने से पहले ही वह यह नियम सामने वाले यजमान को बता देता था और उसकी मंजूरी होने पर ही काम करता था। एक बार एक सेठ आया उसने सामान उठाने को कहा, मजदूर जल्दबाजी में अपना नियम भूल गया ,और सामान उठाकर सेठ के साथ चलने लगा, आधे रास्ते जाने के बाद मजदूर को अपना नियम याद आया तो उसने बीच रास्ते में ही सामान उतार कर रख दिया और सेठ से कहा - सेठ जी मेरा नियम है, कि आप मुझे सत्संग सुनाएं या मैं आपको सुनाउ तभी मैं सामान उठाउंगा । सेठ को जरा जल्दी थी इसीलिए सेठ ने कहा भाई तू ही सुना मैं सुनता हूं । मजदूर के अंदर छुपा संत जाग गया और सत्संग के प्रवचन धारा बहना शुरू हो गई। सफर सत्संग सुनते सुनते कट गया । सेठ के घर पहुंचते ही सेठ ने मजदूर का पैसा अदा कर दिया । मजदूर ने पूछा - क्यों सेठ जी ,सत्संग याद रहा । मैंने तो कुछ नहीं सुना, मुझे जल्दी थी, और आधे रास्ते आने के बाद में दूसरा मजदूर कहां खोजने जाऊं , इसल

आरक्षण ही जातिभेद और मतभेद का कारण है। Aarakshan hi jatibhed aur matbhed Ka Karan hai.

आरक्षण भी असुरक्षा के भय से उत्पन्न हुई पद्धति है। जिसका हश्र हर कोई देख रहा है। किसी भी वजह से किसी के भी दिमाग में बैठा ना कि आप कमजोर हैं। आपको यदि सुरक्षा नहीं मिली, तो आप का विकास नहीं होगा। यह एक बहुत बड़ी विपरीत धारणा है। यदि वास्तविकता में किसी का विकास करना हो तो उसके मन से भय व अविश्वास को निकालने की जरूरत है। उन्हें अच्छी शिक्षा देने और संघर्ष के लिए तैयार करने की जरूरत है। यदि हम ज्यादा आरक्षण का सहारा देंगे, तो वह जाति या वर्ग विशेष कभी भी विकसित ही नहीं हो पाएगा। इसके साथ परस्पर मतभेद वह जातिवाद का जहर फैलता ही जाएगा। जिस चीज को भुलाने की जरूरत है उस चीज को बढ़ावा देंगे, तो हमारा भविष्य कभी अच्छा नहीं हो सकता। आरक्षण पूर्णतया वैज्ञानिक पद्धति है। लोगों को यह सिखाना कि किसी और को मिलने वाला अवसर आपको मिलना चाहिए, वैज्ञानिक कैसे हो सकता है। जो लोग किसी समाज के शुभचिंतक के रूप में कार्य करना चाहते हैं, उन्हें आरक्षण के बजाय ऐसे तरीके पर कार्य करना चाहिए जिससे समाज का वास्तविक भला हो सके। लोगों को प्रशिक्षित कर, उनके मन से यह डर निकालना है कि हम किसी से क

कलयुग में होने वाली पांच भविष्यवाणियां Kalyug mein hone Wali panch bhavishyavaniyan

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, कौरवो का संहार हो गया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा , "धर्मराज ! युद्ध समाप्त हो गया है ,और साथ ही साथ धर्म की विजय हुई ।अधर्मीयो का नाश हुआ है, अब आप राज्याभिषेक की तैयारी करें राज्य की लगाम अपने हाथों में ले। युधिष्ठिर ने कहा प्रभु हजारों लाखो छत्रिय युवकों का रक्त बहा है। अपने कितने स्वजन इस युद्ध में स्वाहा हो गए हैं ,अब मुझे वैराग्य आ रहा है मुझे राज सिंहासन पर नहीं बैठना है । सोच रहा हूं कि थोड़े दिन गंगा किनारे चला जाऊं और एकांत में तपस्या करू, ध्यान भजन करू, प्रायश्चित करके अपने अंदर के कर्मों का नाश करू निर्मल होकर फिर शांति से राज करो। श्री कृष्ण मुस्कुराए," पांडु पुत्र फिर आप शांति से राज नहीं कर सकेंगे क्योंकि अब कलयुग का आगमन हो रहा है, उसके लक्षणों की झलक देखनी हो तो आप पांचों भाई अलग अलग दिशा में चले जाओ, वहां पांचों को आश्चर्य दिखाई देंगे आप लोग चले जाओ वहां से लौट आने पर इस विषय में शाम को बात करेंगे पांचो पांडव पांच दिशा में निकल गए । सर्वप्रथम युधिष्ठिर में दो सूंड वाला हाथी देखा उसे देखकर धर्मराज दंग रह गए

हम जीवन भर सिर्फ शरीर सुख पाने के लिए कर्म करते हैं ham jivan Bhar sirf sharir sukh pane ke liye karam karte Hain

देह के रागी तथा घुमने के शौकीन गर्मियों में माउंट आबू नैनीताल शिमला आदि स्थानों पर जाकर महीना भी लगा आए तो भी कम लगता है। परंतु भगवान की प्रतिष्ठा, अठाई महोत्सव जैसे धार्मिक प्रसंगों में और आठ दिनों के लिए भी जाना हो तो सोचना पड़ता है। शरीर को मजबूत बनाने के लिए सर्दियों की कड़कड़ाती ठंड में भी प्रातः काल खुले शरीर से व्यायाम कसरत करने के लिए तैयार हो जाते हैं। परंतु प्रात:काल मंदिर में जाकर प्रभु की प्रक्षाल कराने पूजा करने में बहुत ठंड लगती है। अतः सर्दियों में पूजा भी छोड़ देते हैं। मित्रों से बातचीत करने के लिए घंटों खड़े रहेंगे, टिकिट न मिले तो घंटों खड़े रहेंगे तो पैर कमर कुछ नहीं दिखेगा परंतु प्रतिक्रमण करने के लिए उठ - बैठ करनी पड़े तो खड़े-खड़े का काउसग्ग करना पड़े तो कमर पैर धुटने सब दुखने लग जाते हैं। स्नान करने के लिए बाथरूम में जाएं तो आधा घंटा तक बाहर नहीं निकलते परंतु पूजा करने के लिए परमात्मा के मंदिर में जाएं तो दस मिनट से ज्यादा नहीं लगाते। पेट भरने के लिए थाली के पास बैठते हैं तो दस आइटम होने पर भी यदि एकाध चटनी जैसी आइटम रह जाए तो खाने का स्वाद उड़ जाता है। शास्त्

प्रभु भक्ति से दु:ख मुक्ति Prabhu bhakti se dukh mukti

जीवन में पुण्य बन्ध के अनेक साधन शास्त्रों में उपलब्ध होते हैं। परंतु सर्वोत्कृष्ट पुण्य का बन्ध परमात्मा भक्ति से होता है। जैन शासन में मोतीशा सेठ का नाम प्रसिद्ध है। जिसने पालीथाना सिद्धाचल तीर्थ पर स्व नाम की टूंक का निर्माण भी करवाया है। उसके जीवन की परमात्मा श्रद्धा की एक बात जीवन में प्रेरणादायक है। एक बार एक कसाई गायों को पकड़कर कसाई खाने ले जा रहा था। रास्ते में मोतिशा सेठ के नौकर ने उसे देख लिया। उसने उसे गाय छोड़ने के लिए कहा। परंतु वह नहीं माना। नौकर और कसाई का परस्पर झगड़ा हो गया। नौकर ने कसाई के पेट में जोर से लात मारी जिससे योगानुयोग उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। उस समय ब्रिटिश सरकार का राज्य था। वे नौकर को हत्या के आरोप में पकड़ कर ले जाने लगे। सेठ को जैसे ही समाचार मिला तो वह भागा भागा आया और नौकर को छुड़ाकर खून का आरोप सेठ ने स्वयं के सिर पर ले लिया और कहा कि मैंने ही अपने नौकर को कहा था। अतः में ही दोषी हूं मुझे सजा दी जाए। ब्रिटिश सरकार ने सेठ को फांसी की सजा का हुक्म दे दिया। मुंबई में मुंबा देवी के मैदान में फांसी देने का मंच बांधा गया। सेठ को पूछा गया कि आप की अंति

गणेश स्तुति द्वारा कार्य - सिद्धि के अचूक मंत्र, यंत्र और तंत्र Ganesh stuti dwara karya siddhi ke achuk mantra, yantra aur tantra

भारतीय संस्कृति में गणेश जी की उपासना प्राचीन काल से ही होती आ रही है। किसी भी कार्य के प्रारंभ में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है। उन्हें गणपति गणनायक की पदवी प्राप्त है। अध्यात्म के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदू धर्म की अनेक शाखाओं में गणेशजी पूज्य और अतिशय प्रभाव संपन्न देवता स्वीकृत है। उन्हें विद्या, बुद्धि का प्रदाता, विघ्नविनाशक, मंगलकारी, रक्षाकारक और सिद्धिदायक माना जाता है। जो मनुष्य विद्यारंभ, विवाह, ग्रहप्रवेश, यात्रा, संग्राम तथा संकट के अवसर पर श्री गणेश जी की महामंत्र एवं बारह नामों का नित्य जाप करता है उसके कार्यों में कभी विध्न नहीं पड़ता हैं। जो व्यक्ति "ॐ गं गणपतये नमः" महा मंत्र का प्रतिदिन प्रात: काल उठने के साथ ही मौनव्रत धारण कर सर्वप्रथम ३१ बार जाप करता है, उसका हर दिन उत्तम एवं उल्लास से भरा होता है व आने वाले विध्न स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं, इसी प्रकार "श्री हरिद्रागणेश यंत्र" ( ताम्रपत्र पर अंकित ) का भी विशेष महत्व है। इसे पूजा के स्थान पर रखकर प्रतिदिन धूप दीप के साथ पूजा एवं दर्शन से मनुष्य की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। साथ ही यह य

संतों का काम उपदेश देना, विरागी बनाना है Santon ka kam updesh dena, Veragi banana hai

एक विद्वान पंडित महा अभिमानी था। वह प्रत्येक गांव में जाता, वहां विद्वान पंडितों को चर्चा के लिए बुलाता, चर्चा में विजय बनकर पारितोषिक लेकर जाता। अधिकतर वह सामने वालों को पूर्व पक्ष स्थापन करने को कहता और तर्क वितर्क आदि के द्वारा पूर्व पक्ष का खंडन कर विजय माला प्राप्त कर लेता था। एक बार एक नगर में एक नमृ, सरल, अनुभवी और कुशाग्र बुद्धि के धनी संत ठहरे हुए थे। वह अभिमानी पंडित उस नगर में गया, उसने राज दरबार में सभी पंडितों को जीत लिया। तब उसके गर्व को देखकर एक साधारण व्यक्ति ने कहा - आप हमारे नगर में विराजित संत पुरुष को वाद में जीते तो हम आपको पंडित, विद्वान मानें। उसने गर्व में आकर बोला कहां है वह संत‌ ? चलो अभी उसे हरा देता हूं। वह कहां गये। वाद का निमंत्रण दिया। संत ने कहा - भाई ! वाद करना संतों का काम नहीं। संतों का काम उपदेश देना, विरागी बनाना है। तब उसने कहा - देखा मुझे देखकर डर गया। अब बहाने बनाता है। संत ने कहा - बहाने नहीं बनाता हूं। तेरी दया खाता हूं। तू हार जाएगा। तेरी कीर्ति नष्ट हो जाएगी। इसीलिए मना करता हूं। फिर भी वह न माना तब राज्यसभा में संत आए और उसने संत को पूर्व

देह से आत्मा और आत्मा से परमात्मा deha se aatma aur aatma se parmatma

हाथी कितना बड़ा होता है और महावत हाथी से बहुत छोटा होता है, महावत से छोटा अंकुश होता है, उस से छोटी महावत की हथेली होती है और हथेली से छोटी उसकी उंगलियां होती है। जिससे वह अंकुश को चलाता है और अंगुली से भी छोटा होता है मन जो अंगुली को चलाता है और हाथी को नियंत्रित किया जाता है। पर क्या आपने सोचा है मन से भी कोई छोटी चीज महावत के शरीर में है जी हां वह है उसकी आत्मा जो मन से भी ज्यादा सूक्ष्म है, अदृश्य और अगोचर है। मन तो फिर भी व्यक्ति की गतिविधियों से अनुभव किया जा सकता है परंतु आत्मा का अनुभव करने के लिए तो अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है। यद्यपि मन से ही प्राणियों के सारे क्रियाकलाप होते हैं और मन से ही सारा संसार चलता है,पर मन के पीछे जो आत्मा की छिपी हुई शक्ति है उसे हम भौतिकता की अंधी दौड़ में कभी पहचान नहीं पाते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि आत्मा होती है, यदि होती है तो उसका आकार प्रकार क्या है ? उसको किसने देखा है ? तो मेरा जवाब है, कि क्या किसी ने मन को देखा है ? क्या किसी ने हवा को देखा है ? क्या आपने अहंकार को देखा है ? नहीं फिर भी यह है कि नहीं ? इसी तरह आत्मा भी दिखाई नहीं

शत्रु को कमजोर मानकर युद्ध नहीं लड़ना चाहिए और शास्त्रों की ताकत के साथ मनोबल का प्रयोग किया जाना चाहिए shatru ko kamjor mankar yuddh Nahin ladna chahie aur shastron ki takat ke sath manobal ka prayog Kiya Jana chahie

बोनापार्ट नाम का एक युवा, आगे चलकर नेपोलियन के नाम से विश्व विख्यात हुआ, जिसने आत्म संयम और दूरदर्शिता से अपने व्यक्तित्व को गढ़ा। दृढ़ इच्छाशक्ति और सपनों को साकार करने का नाम है - नेपोलियन। नेपोलियन की किशोरावस्था की घटना है। उन्हें अध्ययन के लिए अक्लेनी नामक स्थान में एक नाई के घर पर रहना पड़ा था। वह आकर्षक व्यक्तित्व वाला युवा था। नाई की स्त्री उस पर मुग्ध हो गई। उसको अपनी और आकर्षित करने का प्रयास करती रहती। लेकिन नेपोलियन के सामने हिमालय जैसा महान लक्ष्य था । जब भी स्त्री बोलने का प्रयास करती है, वह हाथ में पुस्तक लेकर पढ़ने लग जाता। नेपोलियन की दिनचर्या संयमित और अनुशासित थी। वही नेपोलियन एक दिन अपने देश का प्रधान सेनापति बना। उसे एक बार उस स्थान पर जाने का मौका मिला, जहां रहकर उसने शिक्षा ग्रहण की थी। नेपोलियन को वह घर देखने का मन हो गया। वह अप्रत्याशित रूप से उस नाई के घर पहुंच गया। उस समय नाई की स्त्री अपनी दुकान पर बैठी हुई थी। नेपोलियन उसके सामने खड़ा था। वह उस स्त्री से बतियाने लगा - तुम्हें याद है कि एक बोनापार्ट नामक युवक पढ़ने के लिए आपके घर रहता था। महिला झुंझलाकर बोली