जीवन में पुण्य बन्ध के अनेक साधन शास्त्रों में उपलब्ध होते हैं। परंतु सर्वोत्कृष्ट पुण्य का बन्ध परमात्मा भक्ति से होता है। जैन शासन में मोतीशा सेठ का नाम प्रसिद्ध है। जिसने पालीथाना सिद्धाचल तीर्थ पर स्व नाम की टूंक का निर्माण भी करवाया है। उसके जीवन की परमात्मा श्रद्धा की एक बात जीवन में प्रेरणादायक है। एक बार एक कसाई गायों को पकड़कर कसाई खाने ले जा रहा था। रास्ते में मोतिशा सेठ के नौकर ने उसे देख लिया। उसने उसे गाय छोड़ने के लिए कहा। परंतु वह नहीं माना। नौकर और कसाई का परस्पर झगड़ा हो गया। नौकर ने कसाई के पेट में जोर से लात मारी जिससे योगानुयोग उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। उस समय ब्रिटिश सरकार का राज्य था। वे नौकर को हत्या के आरोप में पकड़ कर ले जाने लगे। सेठ को जैसे ही समाचार मिला तो वह भागा भागा आया और नौकर को छुड़ाकर खून का आरोप सेठ ने स्वयं के सिर पर ले लिया और कहा कि मैंने ही अपने नौकर को कहा था। अतः में ही दोषी हूं मुझे सजा दी जाए। ब्रिटिश सरकार ने सेठ को फांसी की सजा का हुक्म दे दिया। मुंबई में मुंबा देवी के मैदान में फांसी देने का मंच बांधा गया। सेठ को पूछा गया कि आप की अंति
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