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Showing posts from May, 2019

तनाव का कारण Tanav ka Karan

तनाव का सबसे बड़ा कारण बचाव प्रवृत्ति है। जब मन स्थितियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता, तो मन में हमेशा असुरक्षा का भय बैठा रहता है। हर स्थिति उसे डरावनी लगती है। मन निरमूल आशंकाओं से घिरा रहता है। इंसान खुद के प्रति अरुचिकर हो जाता है और वह किसी भी स्थिति को तनाव की वजह बना लेता है। ऐसा नहीं है कि ज्यादा बुरी स्थितियां ही तनाव का कारण बनती है। सामान्य - सी स्थिति भी तनाव का कारण बन सकती है और इंसान बुरी से बुरी स्थिति को भी स्वीकार कर ले, तो तनाव से बच सकता है। जब मन में स्वीकार भाव आता है, तो मन सामना करने के लिए तैयार हो जाता है और तनाव नहीं होता है। इसलिए इस स्थितियों से जितना भागने की कोशिश करेंगे, उतनी ही वे दिमाग पर ज्यादा हावी होंगी और तनाव बढ़ेगा। स्थितियों का सामना करने की तैयारी रखना ही समझदारी है। तनाव का सबसे बड़ा कारण भी तनाव ही होता है, जब बार-बार इंसान के मन में यह बिठा दिया जाता है कि तनाव नहीं करना चाहिए। तनाव बुरी चीज है, तो जब थोड़ा सा भी तनाव उसे होता है, तो वह उससे परेशान होने लगता है और जो उसे तनाव हो गया उसी बात को लेकर और अधिक तनाव में आ जाता है।

भगवान को मनाने का प्रयास bhagwan ko manane Ka prayas

व्यक्ति भगवान के पास भी सिर्फ अपनी सुरक्षा का उपाय करने के लिए ही जाता है। वहां उसका एक ही ध्येय होता है कि जिन इच्छाओं को मैं अपने पुरुषार्थ से पूरा नहीं कर पाया, वह सब भगवान के सामने विनती करने से पूरी हो जाएंगी।वह हर तरह से भगवान को मनाने का प्रयास करता है। भगवान के सामने जाकर अपने आप को दीन - हीन स्वीकार करता है, अपने आपको मूर्ख- अज्ञानी स्वीकार करता है, ताकि भगवान को तरस आ जाए और उसकी सभी अधूरी इच्छाएं पूरी हो जाएं। कितने सरल रास्ते से व्यक्ति अपनी सुरक्षा का इंतजाम करना चाहता है। यही नहीं जब बार-बार विनती करने पर भी वह कुछ हासिल नहीं होता, तो भी उसकी समझ में यह नहीं आता है कि मांगने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। कुछ हासिल करना है, तो पुरुषार्थ करना होगा। इसके बजाय वह यह सोचता है कि भगवान को मनाने में मुझसे कुछ कमी रह गई लगती है, इसीलिए मैं अब दोबारा प्रयास करता हूं। वह अबकी बार थोड़ा क्रिया - कर्म और बढ़ा लेता है। थोड़ी पूजन सामग्री, थोड़ा समय, थोड़ा अनुनय - विनय और बड़ा लेता है। शायद अबकी बार भगवान मान जाएं। ऐसा वह जीवन भर करता रहता है और हर बार अलग-अलग तरीकों से भगव

बेसहारे का सहारा Beshare ka Shara

जब व्यक्ति यह सोचता है कि काश ! मुझे जीवन में ऐसा कोई मजबूत सहारा मिल जाए जिसकी मदद से मैं कामयाब हो सकूं, तो व्यक्ति यह ख़ुद ही स्वीकार कर लेता है कि वह बहुत कमजोर है। जब व्यक्ति बार-बार यह सोचता है, तो वह और कमजोर होता चला जाता है। हर असफलता के बाद यही सोचता रहता है कि मुझे कोई सहारा नहीं मिला, इसीलिए मैं सफल नहीं हो पाया। फिर वह अपनी सफलता के लिए अकेले संघर्ष करने का प्रयास नहीं करता, बल्कि वह हर असफलता के बाद कोई दूसरा सहारा खोजने का प्रयास करता रहता है। यह प्रवृति व्यक्ति को आत्म-निर्भर बनने से रोकती रहती है, और आत्म-निर्भर बने बिना कामयाबी मिल नहीं सकती। इसीलिए जीवन में सहारे खोजने में ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि खुद में ही जीवन की जंग को जीतने का साहस पैदा करना चाहिए। सहारा लेने में तो बहुत बड़ा जोखिम है। सहारा नहीं मिला, तो परेशानी , सहारा गलत मिल गया, तो उससे भी बड़ी परेशानी और सहारा मिलकर बीच में छूट गया, तो पूरी तरह बेसहारा होने की सबसे बड़ी परेशानी। इसलिए जीवन की गाड़ी को किसी के सहारे चलाने की निर्भरता नहीं होनी चाहिए। आपको कोई सहारा मिल भी रहा है, तो अपने आपमे

विश्वास है तो आप कामयाब हो.. vishwas hai to aap kamyab ho..

सफलता का मतलब है.... अमीरी - शानदार घर, मजेदार छुट्टियां, यात्रा, नई चीजें, आर्थिक सुरक्षा, अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा खुशाली देना। सफलता का मतलब है प्रशंसा का पात्र बनना, लीडर बनना, अपने बिजनेस और सामाजिक जीवन में सम्मान पाना। सफलता का मतलब है आजादी - चिंताओं, डर कुंठाओं और असफलता से आजादी। सफलता का मतलब है आत्म - सम्मान, जिंदगी का असली सुख और जीवन में संतुष्टि, जो लोग आप पर निर्भर है उनके लिए अधिक से अधिक करने की क्षमता। सफलता - उपलब्धि - मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। यकीन कीजिए, सचमुच यकीन कीजिए कि आप पहाड़ हिला सकते हैं, और आप वाकई ऐसा कर सकते हैं। ज्यादातर लोगों को यह यकीन ही नहीं होता कि उनमें पहाड़ हिलाने की क्षमता है। इसका परिणाम यह होता है कि वह ऐसा कभी नहीं कर पाते। 'मुझे विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूं' वाला रवैया हमें वह शक्ति, योग्यता और ऊर्जा देता है जिसके सहारे हम वह काम कर पाते हैं। जब आपको यकीन होता है कि आप कोई काम कर सकते हैं, तो आपको अपने आप पता चल जाता है कि इसे कैसे किया जा सकता है । जिस आदमी को विश्वास होता है कि वह काम कर लेगा, उसे हमेशा उस काम को क

बच्चे की चाल मास्टर बेहाल bacche ki chaal master behal

बच्चे की चाल मास्टर बेहाल bacche ki chaal master behal एक वाक्या याद आ गया। बड़ा मजेदार वाक्या है। हुआ यूं कि एक बच्चा मास्टर के पास पहुंचा और बोला – गुरुजी! कल रात आपके बाप मेरे सपने में आए। मास्टर बोला – मेरे बाप! और तेरे सपने में ? झूठ, बिल्कुल सफेद झूठ। मेरे बाप तेरे सपने में आ ही नहीं सकते। बच्चा बोला – गुरुजी, आप मेरा विश्वास करें। आपके पिताजी मेरे सपने में सच में आए थे। मास्टर ने कहा – लेकिन मेरे बाप को मरे तो पांच साल हो गए, आज तक मेरे सपने में नहीं आए तो आए तेरे सपने में कैसे आ गए ? बच्चा बोला – गुरुजी, आपके सपने में नहीं आए तो मैं क्या करूं ? और यह कोई जरूरी भी नहीं है कि आप के बाप हैं तो केवल आप ही के सपने में आए। और किसी के सपने में ना आए। मास्टर ने कहा – हां, ऐसा कोई जरूरी नहीं है। पर वो तेरे सपने में कैसे आ गए ? बच्चा बोला – बस बाई चांस। मास्टर ने कहा – अच्छा ठीक है, बोल, मेरे बाप क्या कह रहे थे ? बच्चे ने कहा – मास्टर जी ! और तो कुछ नहीं बोले। बस केवल यही कहा कि कल तू मेरे बेटे के पास जाना और उससे कहना कि वह तुझे अच्छे नंबरों से पास कर दे। मास्टर ने कहा – कमाल

संघर्ष और सफलता sangharsh aur safalta

संघर्ष और सफलता sangharsh aur safalta किसी भी कार्य में यदि सफल होना चाहते हो तो उसे खुल कर जितने की भावना से करना होगा।  यदि बचने की भावना से कार्य करोगे तो असफलता निश्चित है।यदि हर निर्णय से, हर चुनौती से बचने का रास्ता खोजोगे, तो सफलता हासिल हो ही नहीं सकती। हर काम को शुरू करने से पहले यह सोच लिया कि यदि इसे मैं ठीक से न कर पाया, तो क्या होगा और इस डर से कोई भी कार्य शुरू ही नहीं किया तो फिर सफलता मिलने का तो सवाल ही कहां पैदा होता है। यदि कोई कार्य शुरू भी किया और एक – दो प्रयास में ही हार मान ली कि मुझसे तो यह नहीं हो पाएगा, तो भी सफलता नहीं मिल सकती। किसी भी कार्य के लिए लगातार प्रयास करोगे, तभी तो सफलता हासिल होगी। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि पानी में से घी निकालने का प्रयास करो। आवश्य कार्य का चुनाव समझदारी पूर्वक होना चाहिए। दूरदृष्टि होनी चाहिए। लेकिन सही कार्य चुनने के पश्चात उस में लगातार प्रयासरत रहने पर ही सफलता मिलती है। आप आश्चर्य करोगे की संघर्ष की परिणीति दु:खद नहीं है, बड़ी सुखद है। दु:खद तो बचाव की परिणीति है। संघर्ष के बाद जो जीत मिलती है, उसमें बड़ा आनं

बच्चे की चाल मास्टर बेहाल bacche ki chaal master behal

बच्चे की चाल मास्टर बेहाल bacche ki chaal master behal एक वाक्या याद आ गया। बड़ा मजेदार वाक्या है। हुआ यूं कि एक बच्चा मास्टर के पास पहुंचा और बोला – गुरुजी! कल रात आपके बाप मेरे सपने में आए। मास्टर बोला – मेरे बाप! और तेरे सपने में ? झूठ, बिल्कुल सफेद झूठ। मेरे बाप तेरे सपने में आ ही नहीं सकते। बच्चा बोला – गुरुजी, आप मेरा विश्वास करें। आपके पिताजी मेरे सपने में सच में आए थे। मास्टर ने कहा – लेकिन मेरे बाप को मरे तो पांच साल हो गए, आज तक मेरे सपने में नहीं आए तो आए तेरे सपने में कैसे आ गए ? बच्चा बोला – गुरुजी, आपके सपने में नहीं आए तो मैं क्या करूं ? और यह कोई जरूरी भी नहीं है कि आप के बाप हैं तो केवल आप ही के सपने में आए। और किसी के सपने में ना आए। मास्टर ने कहा – हां, ऐसा कोई जरूरी नहीं है। पर वो तेरे सपने में कैसे आ गए ? बच्चा बोला – बस बाई चांस। मास्टर ने कहा – अच्छा ठीक है, बोल, मेरे बाप क्या कह रहे थे ? बच्चे ने कहा – मास्टर जी ! और तो कुछ नहीं बोले। बस केवल यही कहा कि कल तू मेरे बेटे के पास जाना और उससे कहना कि वह तुझे अच्छे नंबरों से पास कर दे। मास्टर ने कहा – कमाल ह

मौत का उपाय Maut ka upay

मौत का उपाय maut ka upay किसी नगर में एक आदमी रहता था। वह  पढ़ा – लिखा और चतुर  भी था। उसके भीतर  धन कमाने की लालसा  थी। जब  पुरुषार्थ को भाग्य का सहयोग  मिला तो उसके पास  लाखों की संपदा  हो गई। ज्यों – ज्यों पैसा आता गया उसका  लोभ बढ़ता गया।  वह बड़ा खुश था कि कहां तो उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी और कहां अब उसकी  तिजोरियां  भरी रहती हैं।  धन के बल पर आराम के जो भी साधन वह चाहे वह प्राप्त कर सकता था। कहते हैं,  आराम चीज अलग है तथा चैन चीज अलग है। धन से समस्त साधन एवं सुविधा मिल सकती है किंतु सुख नहीं मिल सकता।  इतना सब कुछ होते हुए भी उसके जीवन में  एक बड़ा अभाव था,  घर में कोई  संतान  नहीं थी। समय के प्रवाह में उसकी  प्रौढ़ावस्था  बीतने लगी पर  धन-संपत्ति के प्रति उसकी मूर्च्छा में कोई अंतर नहीं पड़ा। अचानक एक दिन बिस्तर पर लेटे हुए उसने देखा कि सामने कोई अस्पष्ट सी आकृति खड़ी है। उसने घबराकर पूछा, कौन ?  उत्तर मिला, मृत्यु इतना कह कर वह आकृति गायब हो गई।  वह आदमी बेहाल हो गया। बेचैनी के कारण उसे नींद नहीं आई।  इतना ही नहीं उस दिन से उसका सारा सुख मिट्टी हो गया।   मन

कहां तक ले जाओगे धन की गठरी ? Kahan tak le jaaoge dhan ki gatery ?

कहां तक ले जाओगे धन की गठरी ? Kahan tak le jaaoge dhan ki gatery ? इन दिनों  अर्थ  का बोलबाला इतनी तेजी से बढ़ रहा है। कि हर वर्ग के लोग येन केन प्रकारेण  धन एकत्रित  करने में जुटे हुए हैं। भले ही उसके दुष्परिणाम उसकी दुनिया को उजाड़ दें मगर  पाप  और  पुण्य  की परिभाषा को नजरअंदाज कर हर व्यक्ति इस दौड़ में से दौड़ रहा है। जिस  परमपिता  की हम  संतान  हैं, उन्होंने हमें इस  सृष्टि  पर  कर्म  करने के लिए  कुछ समय  के लिए भेजा है। हमने तो  दुनिया को अपनी  जागीर  समझ लिया है।जैसे धन से हम जिंदगी खरीद कर  संसार में स्थाई  रहेंगे।  पाप कर्म  से इकट्ठी की हुई  धन की गटरी  को हम कहां तक साथ ले जायेंगे। इस तरह से सोचने की शायद हमें फुर्सत तक नहीं है। परमात्मा ने कहा है – कि  सहज मिले वह दूध बराबर, मांग लिया वह पानी, खींच लिया वह खून बराबर, कह गए महावीर वाणी। बड़ी विडंबना है कि आज इस उक्ति को  नजरअंदाज कर हर व्यक्ति अर्थ के लिए क्या-क्या नहीं करता,  इसकी शब्दों में व्याख्या जितनी की जाए उतनी कम होगी।  पुण्य कमाने के लिए एकमात्र पूजा व श्रध्दा केंद्र हमारे तीर्थ व धर्म स्थान होते हैं

क्रोध का मापक : krodh ka mapak

क्रोध का मापक : krodh ka mapak क्रोध का मापक : krodh ka mapak एक सेठ के घर में एक नौकर था दो मालिक का कभी सम्मान नहीं करता था। बात-बात में सेठ जी की बात को काट देना और कदम – कदम पर उनका उपहास करना उसकी आदत बन चुकी थी। किसी के भी आदेश का पालन आवेशपूर्वक करना उसकी खासियत थी। तथापि सेठ जी ने उसे अपने घर में रखा हुआ था क्योंकि उनका जीवन जीने का ढंग निराला था। उनका मानना था नौकर के द्वारा जो भी व्यवहार मेरे साथ किया जा रहा है इसमें नौकर तो मात्र हैं। मूल कारण मेरे पूर्वकृत अशुभ कर्म ही है। एक दिन सेठ जी के घर अचानक सूरत शहर से चार -पांच मेहमान आ गए। सेठ ने सभी का दिल खोलकर अतिथि सत्कार किया और नौकर को खाना बनाने का आदेश दिया। आदेश सुनते ही उसका आवेश भड़क उठा और उसने मेहमानों के सामने बड़बड़ाना प्रारंभ कर दिया, स्वयं से तो कुछ भी नहीं होता और हमें इतना काम करना पड़ रहा है। मेहमानों को खाने का आग्रह करने की जरूरत ही क्या थी, चाय नाश्ता तो हो गया था। मेहमान अपने आप चले जाते सारे मेहमान का – पीकर चले जाएंगे और सारा काम तो मुझे ही करना पड़ेगा। ऐसी अनुचित वचन जब मेहमानों ने

चतुर से अधिक चतुराई chatur say adhik chaturai

चतुर से अधिक चतुराई chatur say adhik chaturai एक किसान ने पड़ोस के किसान से एक हंडा उधार लिया।वह उसमें मक्खन पिघलाने के लिए आग जला रहा था कि इतने में कहीं से एक बिल्ली आई और हंडे पर पैर रखकर खड़ी हो गई। यह देख उसने बिल्ली को भगाया। बिल्ली पीछे की और कूदी और हंडा भी साथ में गिरकर दो टुकड़े हो गया। उस किसान में गोंद से दोनों टुकड़े जोड़ दिए और पड़ोस के किसान के पास ले जाकर उससे बोला, “यह लो अपना हंडा।” पड़ोसी ने देखा, हंडे में दरार थी। उसने पूछा, “यह क्या है ?” किसान ने कहा, “मुझे नहीं मालूम।” फिर वह अपने घर वापस चला गया। पड़ोसी ने अदालत में फरियाद की। किसान ने वकील से सलाह मांगी। वकील ने सब – कुछ सुनकर कहा, “जो कुछ हुआ है, उसके लिए क्योंकि कोई गवाह नहीं है, इसलिए तीन तरह से बात की जा सकती है। तुम कह सकते हो कि जब तुमने हंडा उधार लिया था तभी वह टूटा हुआ था। या कह सकते हो कि तुम्हारे वापस देने के बाद वह टूट गया था। यह भी कर सकते हो कि तुमने हंडा लिया ही नहीं था।” यद्यपि हंडे का दाम चार आना ही था, तो भी किसान वकील को एक रूपया देकर आया। अगले दिन अदालत में सुनवाई हुई। किसान न