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Showing posts from February, 2020

माता का स्थान सबसे ऊंचा और प्रभावशाली होता है Mata ka sthan sabse uncha aur prabhavshali hota hai

चुलनी पिता की बात उपासक दशांग में आती है। वह पौषध करके धर्म जागरण कर रहा था, तो एक देव उसकी परीक्षा के लिए आता है। देव कहता है - तू धर्म छोड़ ! नहीं तो मैं तुम्हारे बच्चों को खत्म कर दूंगा पर श्रावक चुलनी पिता अविचल रहा।पत्नी को लाकर उसके सामने खड़ी कर देव कहता है - तेरी पत्नी को खत्म कर दूंगा वरना धर्म छोड़ दे। रोती बिलखती पत्नी को देखकर उसको रोमांच हो उठता है, किंतु वह साधना से विचलित नहीं होता है। अन्ततः उसकी मां को मार देने का भय जैसे ही बताता है, वैसे ही मां को बचाने के लिए वह चिल्लाता हुआ दौड़ पड़ता है। मां - मां करता हुआ वह एक खंभे से टकराया और गिर पड़ा। यह कोलाहल सुनकर मां दौड़ आई - बेटा क्या हुआ ? चुलनी पिता ने कहा - अभी-अभी तुझे कोई मारने आया था, मैं तेरी रक्षा के लिए दौड़ा तो खंभे से टकराकर गिर पड़ा। मां ने कहा - तेरी परीक्षा किसी ने की होगी - बाकी हम सब तो सही सलामत है। चुलनी पिता में पुत्रता जागने वाली माता की भक्ति ही थी। - पितृ सत्य पालन के लिए रामचंद्र जी ने 14 वर्ष तक वनवास में रहे। - भीष्म पितामह अपने पिता की खुशी के लिए "चिरकुमार" रहने का संकल्प किया था। -

दुनिया में केवल वे मरते हैं, जो मन को नहीं मार पाते। Duniya mein keval Ve marte Hain Jo Man ko nahin maar paate.

असली समस्या मन है। इंद्रियां तो केवल स्विच है, मेन-स्विच तो मन ही है। जब कभी भी कोई विश्वामित्र अपनी तपस्या और साधना से फिसलता और गिरता है तो इसके लिए दोष हमेशा मेनका को दिया जाता है जबकि दोष ' मेनका' का नहीं, आदमी के ' मन- का 'है कोई भी आदमी मेनका के आकर्षण की वजह से नहीं, अपितु अपने मन की कमजोरी की वजह से गिरता है। मन बड़ा खतरनाक है। दुनिया से 10 चीजें चंचल है दस मकार चंचल है। आदमी का मन , मधुकर (भंवरा ),मेघ, मानिनी (स्त्री ),मदन (कामदेव), मरुत (हवा) मर्कट (बंदर), मां (लक्ष्मी), मद (अभिमान), मत्स्य - यह दस चीजें दुनिया में चंचल है, और इनमें भी आदमी का मन सर्वाधिक चंचल है । इस मन को समझना, समझाना बडी टेढ़ी खीर है। पल- पल में बदलता है, क्षण- क्षण में फिसलता है । एक पल में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ जाता है और अगले ही पल बंगाल की खाड़ी में उतर जाता है। आदमी का मन चंचल है। मन हमेशा नशे में रहता है । मन पर कई तरह का नशा चढ़ा है पद का नशा, ज्ञान का नशा, पैसे का नशा, प्रतिष्ठा का नशा, शक्ति का नशा, रूप का नशा, इस तरह दुनिया में सैकड़ों तरह के नशे है। जो मानव मन पर सवार

लक्ष्मण को दिया था रावण ने अंतिम संदेश Lakshman ko diya tha ravan ne antim Sandesh

रावण जब मृत्यु शैया पर थे तब राम ने लक्ष्मण से कहा कि, "तुम रावण के पास शीघ्र पहुंचों। उसके पास अमूल्य ज्ञान है, उसे अर्जित करो। उससे जगत के लिए अंतिम संदेश ले आओ।" लक्ष्मण दौड़े। उसने रावण से कहा, "राम रो रहे हैं।" रावण के द्वारा वजह पूछने पर लक्ष्मण ने बताया कि "आपके अंतकाल से व्यथित हुए हैं। मुझे आपके पास अंतिम संदेश प्राप्त करने के लिए भेजा है। बड़े भैया ने कहलवाया है कि "आप अनेक गुणों के भंडार हैं। सीता का अपहरण तो आपकी आकस्मिक (कर्मोदय जनित) भूल थी।" आंख में अश्रु सहित रावण ने कहा कि "मेरे जैसे शत्रु का भी राम गुणकथन करते हैं। इसी लिए राम जगत में भगवान के रूप में पूजे जाते हैं।" अब आपको मेरा अंतिम संदेश यह है, कि" आज की बात कल पर छोड़नी नहीं चाहिए। मेरी इच्छा थी कि मैं स्वर्गगमन के लिए धरती पर सीढी रखूं, जिससे सभी जीव स्वर्गारोहण कर सकें, कोई भी नरक की दिशा में गति न करें, पर वह कार्य अधूरा ही रह गया। मैंने इस काम में विलंब किया और मौत वेग से आगे बढ़ गई। अब अफसोस करने में क्या लाभ। Rich Dad Poor Dad - 20th Anniversa

मन में उत्पन्न भावों का प्रभाव अत्यंत बलशाली होता है। Maan main utpann bhavo ka prabhav atyant balshali hota hai.

एक हाथी प्रतिदिन पानी पीने के लिए बाजार में से होकर नदी के किनारे पर जाया करता था। मार्ग में दर्जी की दुकान आती थी। दर्जी पशु - प्रेमी था। हाथी जब भी उधर से गुजरता तो उसे खाने के लिए कुछ ना कुछ जरूर देता। हाथी भी खुश हो जाता। वह भी जब पानी पीकर वापस आता तो उद्यान में से पुष्पों को तोड़कर दर्जी की दुकान पर डाल जाता। प्रतिदिन का यह कार्यक्रम बन गया। एक दिन दर्जी किसी कार्य अवश्य बाहर गया हुआ था। दुकान पर उसका बेटा बैठा हुआ था। हाथी प्रतिदिन के कार्यक्रम के अनुसार दर्जी की दुकान पर जाकर अपनी सूंड को लंबा किया। दर्जी पुत्र को पिता के कार्य की जानकारी ना होने से अपनी भावना के अनुसार हाथी की सूंड पर जोर से सुई लगा दी। हाथी चुपचाप वहां से चला गया। हाथी पंचेइंद्रियों प्राणी है। उसके पास मन है। दर्जी पुत्र के दुर्व्यवहार से उसका मन ग्लानि से भर गया। नदी के किनारे पानी को पीया। प्रतिदिन तो उद्यान में जाकर फूलों को तोड़ता था, आज उसने बगीचे में ना जाकर गंदे नाले के पास गया, वहां सूंड में कीचड़ भर लिया। जैसे ही दर्जी की दुकान के पास पहुंचा और कीचड़ से भरी सूंड को उसकी दुकान पर उछाला। दर्जी पुत्र भी

आपके बीमार रहने से ही डॉक्टर धनवान बन सकता है। Aapke bimar rahane se hi doctor dhanwan ban sakta hai

एक व्यक्ति ने पूछा - गुरुजी ! दुनि या का सबसे बड़ा रोग कौन सा है ? दुनिया में तरह तरह के रोग हैं। खतरनाक रोग है। एक से बढ़कर एक रोग है। लाजवाब और लाइलाज रोग हैं। कैंसर है, ऐड्स है, हार्ट अटैक है, डायबिटीज है ,ब्रेन हेमरेज है, पैरालिसिस है, वगैरह । आजकल औषधियां बड़ी है, औषधियों के साथ रोग भी बड़े हैं। पहले मनुष्य सौ वर्षों तक जीता था । अब औसतन 60 से 70 साल से ज्यादा नहीं जीता। पहले पूरे शरीर का एक डॉक्टर होता था और अब एक एक अंग का अलग-अलग डॉक्टर है। आंख का डॉक्टर अलग, कान का डॉक्टर अलग होता है दिल का डॉक्टर अलग, दांत का डॉक्टर अलग, हड्डी का डॉक्टर अलग । आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति जोड़ती थी ।आज भी आयुर्वेदिक चिकित्सा में पूरे शरीर का एक ही डॉक्टर होता है। जिसे वैधजी कहा जाता है। एलोपैथिक चिकित्सा ने शरीर का बंटवारा करके बंटाधार कर दिया और आने वाले समय में तो अभी और भी बटवारा होगा। जब दायीं आंख का डॉक्टर अलग होगा और बायीं आंख का डॉक्टर अलग होगा । अभी तो केवल आई स्पेशलिस्ट होता है, और आने वाले समय में लेफ्ट आई स्पेशलिस्ट और राइट आई स्पेशलिस्ट होगा । इतना ही नहीं दांतों का मामला जब

मानव को मृत्यु का दु:ख नहीं राग और ममता का दु:ख है। Manav ko mrutyu Ka dukh Nahin raag aur Mamta ka dukh hai

भगवान महावीर स्वामी जी की वाणी भव के बंधन को तोड़ने वाली है, परंतु अभी तक इस वाणी से ने हमारे अन्तहृदय को स्पर्श नहीं किया है। यदि स्पर्श किया होता तो हमारी आत्मा जन्म मरण के दु:खों से मुक्त हो गई होती। संसार में दु:ख का कारण वस्तु और व्यक्ति नहीं परंतु दु:ख का कारण आसक्ति है, हमारी राग दशा है। मानव चाहे तो ममता के बंधन को तोड़ सकता है परंतु प्रयत्न ही नहीं करता। भ्रमर में ऐसी शक्ति है कि वह कठोर से कठोर लकड़ी को भी छेद सकता है परंतु वही भ्रमर जब कमल की कोमल पंखडियों में कैद हो जाता है तो उसे भेद कर बाहर नहीं निकल सकता। पराग के राग के कारण वह कैद में ही रहना पसंद करता है। उत्तराध्ययन में प्रभू वाणी कहती है…………….. " रागो य दोसो विय कम्म बीयं " राग और द्वेष कर्मबंध के बीज है। जब तक राग है तब तक कर्मबंध भी है। आज मानव को मृत्यु का दु:ख नहीं राग और ममता का दु:ख है। मरते तो दुनिया में बहुत हैं पर अपना व्यक्ति जब दुनिया से जाता है दुःख तभी होता है। एक बार एक सेठ का नौकर छुट्टी लेकर अपने घर गया। जब वापस आने लगा तो सोचा कि रास्ते में हमारे सेठ की बेटी का गांव आता है उसे भी मिलता जाऊ

गुरु और शिष्य दोनों का मन एक होना चाहिए। Guru aur shishya donon ka man ek hona chahie

वनवास समय के दरमियान एक बार मनोरम्य प्रदेश को देखकर रामचंद्र जी ने अपने अनन्य भक्त शिष्य को आदेश दिया कि, हनुमान ! यह मनोरम्य स्थल है। यहां हमें कुछ दिन के लिए रुकना है, तो तुम्हारा मन जो जगह पसंद करें वहां तुम पर्णकुटीर तैयार कर दो।" राम की बात सुनते ही हनुमान किसी सोच में पड़ गए। वहां से हटकर थोड़ी दूर जाकर किसी वृक्ष के नीचे बैठकर रोने लगे। तीन चार घंटे बाद भी हनुमान के वापस न लौटने पर लक्ष्मण और बाद में सीता जी उनकी खोज में निकली। दोनों को हनुमान मिल गए। उन्हें सिसक - सिसककर रोते हुए देख कर सीता ने पूछा, "अरे ! इतना ज्यादा रोने की कोई वजह ? क्या तुम्हारे स्वामी ने तुम्हें कोई उलाहना दी है ? हनुमान ! जो कुछ हुआ हो, वह हमें बताओ। हम उसका कोई समाधान ला देंगे।" हनुमान जी ने स्वस्थता धारणकर कहा - "भगवान ने मुझे आज्ञा दी है कि तुम्हारा मन जहां पसंद आए ऐसे स्थान पर पर्णकुटीर बनाओ। इस आज्ञा का पालन करना मुझसे किसी हाल में संभव नहीं है। अतः मैं भारी उलझन में फंस गया हूं। हाय ! अब मैं आज्ञा द्रोही गिना जाऊंगा। माताजी ! मेरा सवाल यह है कि मुझे तो मन जैसा कुछ है ही नहीं। भग