चुलनी पिता की बात उपासक दशांग में आती है। वह पौषध करके धर्म जागरण कर रहा था, तो एक देव उसकी परीक्षा के लिए आता है। देव कहता है - तू धर्म छोड़ ! नहीं तो मैं तुम्हारे बच्चों को खत्म कर दूंगा पर श्रावक चुलनी पिता अविचल रहा।पत्नी को लाकर उसके सामने खड़ी कर देव कहता है - तेरी पत्नी को खत्म कर दूंगा वरना धर्म छोड़ दे। रोती बिलखती पत्नी को देखकर उसको रोमांच हो उठता है, किंतु वह साधना से विचलित नहीं होता है। अन्ततः उसकी मां को मार देने का भय जैसे ही बताता है, वैसे ही मां को बचाने के लिए वह चिल्लाता हुआ दौड़ पड़ता है। मां - मां करता हुआ वह एक खंभे से टकराया और गिर पड़ा। यह कोलाहल सुनकर मां दौड़ आई - बेटा क्या हुआ ? चुलनी पिता ने कहा - अभी-अभी तुझे कोई मारने आया था, मैं तेरी रक्षा के लिए दौड़ा तो खंभे से टकराकर गिर पड़ा। मां ने कहा - तेरी परीक्षा किसी ने की होगी - बाकी हम सब तो सही सलामत है। चुलनी पिता में पुत्रता जागने वाली माता की भक्ति ही थी। - पितृ सत्य पालन के लिए रामचंद्र जी ने 14 वर्ष तक वनवास में रहे। - भीष्म पितामह अपने पिता की खुशी के लिए "चिरकुमार" रहने का संकल्प किया था। -
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