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Showing posts from November, 2019

आपका नाम और कुल का गौरव बढ़ाने वाली संतान aapka naam aur kul ka gaurav badhane wali santan

आप लोग वृक्ष की जड़ को न सींच कर शाखाओं पर पानी डालने लग गए हैं, की वृक्ष हरा भरा रहे। वस्तुतः जड़ों को सींचने से ही पेड़ हरा भरा रह सकता है। आज के बच्चों का जीवन विनाश की ओर जा रहा है इसमें बच्चों का नहीं माता-पिता का दोष है। आप सभी जानते हैं कि शरीर की रचना वीर्य से होती है। रज और वीर्य अन्न से बनता है। सर्वप्रथम माता-पिता को सात्त्विक आहार करना चाहिए। सात्विक आहार से संतान भी अच्छी बनती है। माता बच्चे को दूध पिलाती है यदि वह दूध होटल के समोसे और पकोड़े से बना है तो बच्चा बड़ा होकर चाट मसाले की दुकान की ओर ही बढ़ेगा। अतः संतान को संस्कारी बनाने के लिए भोजन का संतुलन अवश्य रखना चाहिए। मां की गोद बच्चे की पहली पाठशाला है। जहां पर बालक के चरित्र के बीज बोए जाते हैं। बच्चे वही करते हैं जो देखते हैं। आप बच्चे को जैसा बनाना चाहते हो पहले स्वयं का जीवन भी वैसा ही बना लीजिए। यदि आप चाहते हैं कि मेरा बच्चा कभी झूठ ना बोले तो पहले आपको सत्यवादी बनना पड़ेगा। यदि आप चाहते हैं कि मेरा बच्चा गाली ना दें तो आपको भी मीठी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि बच्चे अनुकरण शील होते हैं। आज हमारी माताएं

सत्संग का महत्व क्या है ? Satsang ka mahatva kya hai ?

एक महिला ने प्रवचन - कथा में सुना की सत्संग से वैकुंठ मिलता है, क्योंकि संत हरिद्वार है और सत्संग गंगा स्नान है। दूसरे दिन जाकर उसने पति से कहा - देखो, एक बहुत बड़े संत आए हैं और उनका सत्संग चल रहा है। सारा गांव सत्संग का लाभ ले रहा है। बड़ा आनंद बरस रहा है, तुम भी सत्संग का लाभ लो क्योंकि सत्संग का फल वैकुंठ है। पत्नी के विशेष आग्रह पर वह दूसरे दिन सत्संग में गया। वहां जाकर सत्संग में बैठा और 10:15 मिनट बाद बार बार इधर-उधर देखने लगा कि वैकुंठ ले जाने वाला कोई विमान आया या नहीं। घंटा भर वह बैठा रहा वहां। विमान कहां से आना था ?जब उसे लगा कि अब कोई विमान आने वाला नहीं है, कोई वैकुंठ मिलने वाला नहीं है तो गुस्से से उठा और संत को भला - बुरा कहते कहते - सत्संग से बाहर निकल गया। घर जा रहा था। गुस्से में तो था ही। रास्ते में नारद जी मिल गए। नारद ने पूछा -भाई! क्या बात है? किसे गाली दे रहे हो? बोला -यह संत लोग बड़े धोखेबाज होते हैं । जनता को गुमराह करते हैं कि सत्संग से वैकुंठ मिलता है। अरे! मैं वहां घंटा पर बैठा ,पर वहां वैकुंठ तो क्या एक कप चाय भी नहीं मिली। उस आदमी ने नारद से पूछा कि आप ही

संघर्ष ही सफलता की मंजिल पर पहुंचने का रास्ता है sangharsh hi safalta ki manjil per pahunchne ka rasta hai

संघर्ष का क्या मतलब है और संघर्ष किस प्रकार करना चाहिए, यह बात भी महत्वपूर्ण है। व्यक्ति कोई भी लक्ष्य लेकर उसे पूरा करने के लिए अपने कार्य का निर्धारण करता है। उस निर्धारित किए गए कार्य से जब वह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है, तो उसे अपने प्रयासों और बढ़ाना पड़ता है। उसके बाद भी लक्ष्य पूरा नहीं होता है, तो कुछ विशेष करने के लिए सोचना पड़ता है। ऐसे निर्णय भी लेने पड़ते हैं, जिनको लेने के लिए मन पहले तैयार नहीं था। यह प्रक्रिया जितनी ज्यादा बार चलती है, उतना ही वह संघर्ष कहलाता है। मन कार्य के प्रति सहज रूप से तैयार हो जाता है, तो संघर्ष का आभास नहीं होता है और मन को तैयार करने में जितनी ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है, उतना ही संघर्ष का आभास ज्यादा होता है। जो कार्य व्यक्ति की क्षमता में हो, वहां तक कार्य करना भी संघर्ष नहीं कहलाता है, लेकिन जब क्षमताओं को और बढ़ाएं बिना वह कार्य संभव नहीं हो पा रहा हो, तो वह संघर्ष का आभास देता है। किसी के जीवन में बार-बार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जिनमें वह अपना काफी कुछ खो देता है। फिर से उसे नया खड़ा करना पड़ता है, वह स्थिति भी संघर्ष पूर्ण स्थिति कहलाती ह

जीतने में जो आनंद नहीं - वह जिताने में है । - Jeetne main woh anand nahi jo jitaane main hai

खरगोश कछुए के पास आया और उससे एक बार फिर दौड़ने की प्रतियोगिता करने को कहा । उसने कहा कि उसके एक पूर्वज ने पहले दौड में हारकर उनकी बिरादरी का नाम नीचा कर दिया था । वह उस दौड को जीतकर नई पीढ़ी का नाम रौशन करना चाहता था । कछुआ तैयार हो गया । निश्चित दिन और समय पर जंगल के राजा शेर ने दौड़ शुरू करवाई । खरगोश ने दौड़कर लगभग पूरा रास्ता मिनटों में पार कर लिया । वह अंतिम रेखा से केवल सौ कदम दूर था । वह सांस लेने के लिए रुका । उसने सोचा कि वह कछुए को देखते ही दौड़ पूरी कर लेगा । लेकिन रुकने पर उसकी नींद लग गई । कोई पन्द्रह मिनट के बाद ,कछुआ वहां पहुंचा। खरगोश के पास पहुंचकर कछुआ कुछ देर रुका और सोचा... फिर उसने खरगोश को नींद से जगाया और बोलो," तुम क्या कर रहे हो ? क्या तुम्हें तुम्हारे पूर्वज द्वारा तुम्हारी बिरादरी का नाम नीचा कर देना याद नही ? क्या तुम्हें नही पता कि तुम्हारे यहां सोने से हमारी नई पीढ़ी को कितनी समय शर्मिन्दगी उठानी पड़ेगी ? उठो, और बाकी दौड़ पूरी करो । मैं भी आता हूं।" खरगोश अचरज में पड़ गया । उसने कहा," फिर कुछ, जब तुम खुद दौड़ जीत सकते थे, तो तुमने मुझे क्य