Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2020

मेरा देश, मेरा वतन, मेरा अभिमान है Mera Desh, Mera watan, Mera abhiman hai

वेशभूषा के साथ आदमी के भीतर अपने देश की धरती का गौरव होना चाहिए। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण ने कहा है -   जिसको न अपनी जाति का और देश का अभिमान है, वह नर नहीं है,पशु निरा और मृतक समान है। अपनों को हमेशा एक बात ध्यान में रखना चाहिए, जहां भी हम रहे, देश का गौरव साथ रहना चाहिए। ऐसा कोई कृत्य हमारे द्वारा नहीं होना चाहिए जिससे देश की संस्कृति को लज्जित होना पड़े। महाराणा प्रताप सिंह शिवाजी गुरु गोविंद, वीर दुर्गादास, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस आदि सैकड़ों ऐसे व्यक्तित्व का जीवन आदर्श आपके समक्ष है, जो अपने देशाचार  के पालन एवं देश गौरव की जीवन कहानी कह रहा है। शिवाजी के संबंध में कहा जाता है - आर्य संस्कृति के रक्षा के लिए शिवाजी ने जहाज का काम किया है। उन शिवाजी के नाम से आज भी सैनिकों के रक्त में स्वदेश प्रेम का उफान आ जाता है। उनका जीवन कितना भक्ति प्रधान और सदाचारी था। उन्होंने अपना विशाल साम्राज्य गुरु के चरणों में अर्पित कर स्वयं उसके संचालक बन कर रहे थे। शिवाजी जितने बड़े वीर योद्धा थे, उतने ही सज्जन थे। एक बार सैनिकों ने एक मुसलमान सुंदरी को बंदी बनाकर उनके सामने उपस्थित किया, सोचा

जब तक विश्वास है तब तक जीवन है। Jab tak vishwas hai tab tak jivan hai.

जीवन में जो महत्व स्वास का है, समाज में वही महत्व विश्वास का है। विश्वास जीवन की स्वास है, विश्वास जीवन की आस है, विश्वास जीवन की प्यास है। दुनिया विश्वास पर टिकी है। जब तक विश्वास- है तब तक दुनिया है। विश्वास उठा यह दुनिया भी उठ जाएगी । लोग कहते हैं, पृथ्वी शेषनाग पर टिकी है लेकिन मैं कहता हूं कि दुनिया शेषनाग पर नहीं टिकी है, अपितु हमारे - तुम्हारे आपसी विश्वास पर टिकी है। विश्वास सृष्टि की बुनियाद है, श्रद्धा जीवन की नींव है। जीवन की इमारत श्रद्धा और विश्वास के मजबूत पायों पर ही तो खड़ी होती है। पति का पत्नी पर विश्वास है तो जीवन में खुशियां हैं। यह विश्वास टूटा और जीवन नर्क बन गया। बापका बेटे में और बेटे का बाप में विश्वास है तो रिश्तो में माधुर्य है, मिठास है। यह विश्वास उठा कि जीवन में कड़वाहट आई। मालिक का नौकर पर विश्वास न हो तो व्यापार ठप्प हो जाए और नौकर का मालिक पर से विश्वास जाता रहे तो सेवा एक पीड़ादाई बोझ बन जाएगी । स्मरण रहे संसार विश्वास से चलता है, धर्म श्रद्धा से चलता है और विज्ञान तर्क से चलता है। विज्ञान में श्रद्धा का कोई मूल्य नहीं ।

कल की चिंता में वर्तमान समय को व्यर्थ ना गवाएं cal ki chinta mein vartman samay ko vyarth Na gavan

" रात गई बात गई " जो इस भाव में जीता है उसके पास भला तनाव कहां से आएगा ? रात की बात को सुबह लाना और सुबह की बात को रात तक खींच कर ले जाना ही तो चिंता का बसेरा बसाना है । अगर आप जी सकें तो वर्तमान में जीने की कोशिश कीजिए। जो जैसा मिला है उसे जिया जाए‌। जैसे आप अपने घर में खूंटियों पर कपड़े लटकाते हैं वैसे ही उन खूंटियों पर अतीत की यादें लटका दें, भविष्य की कल्पनाओं को लटका दें और आप वर्तमान में जिएं। जो वर्तमान में जीता है जैसी व्यवस्था मिलती है उसे स्वीकार कर लेता है, वह चिंतामुक्त है। कोठरी का भी स्वागत करो और कोठी का भी स्वागत करो। वर्तमान में जीते हुए प्रकृति के सानिध्य में रहने की कोशिश करें। प्रकृति जो कर देती है वही ठीक है। चिंता करने से जीवन के संयोग नहीं बदलते। चिंताओं से समस्या का समाधान भी नहीं निकला करता। अच्छा होगा चिंता करने के बजाय चिंतन करें, निर्णय लें तदनुसार कार्य करें, परिणाम जो आए उसका स्वागत करें। एक अन्य काम और करें कि जीवन में घटी दुर्घटनाओं को अधिक तवज्जो ना दें। उठा-पटक हर किसी की जिंदगी में होती है तभी तो आदमी को "समझ" आती है। लेकिन जो ब

यह मनुष्य जन्म परमात्मा द्वारा दिया गया एक तोहफा है yah manushya janm parmatma dwara Diya gaya ek tohfa hai

मनुष्य में पलायन की प्रवृत्ति घर कर गई है। वह अपने वर्तमान को एक सजा के रूप में मानता है। वह सोचता है कि मनुष्य - जन्म झंझटों से भरा हुआ है। उस ऐसा सिखा दिया जाता है कि इससे मुक्त होना ही परमानंद की स्थिति है। वह जीवन जीने का प्रयास कम करता है और इससे मुक्त होने का प्रयास ज्यादा करता है। नाना प्रकार की कहानियां वह निर्मित कर देता है। अनेक रास्तों की परिकल्पना वह कर लेता है, जिनका कोई आधार नहीं होता है, जिनका कोई प्रमाण नहीं होता है। बस किसी भी कह दिया, कहीं पढ़ लिया और उस पर भरोसा कर अपने जीवन को दांव पर लगा दिया। आश्चर्यजनक बात यह है कि जितने मुंह उतनी बातें। दोमुक्त होने के रास्ते भी हर व्यक्ति के अलग-अलग हैं‌। सबको लगता है कि मेरा रास्ता सही है बाकी सबके गलत है। इस मुक्त होने की चाहत में व्यक्ति पता नहीं क्या-क्या कर बैठता है। हकीकत में यह जीवन से पलायन है। अभी तो जीवन मिला है, उसे सुंदर बनाने की कोई जिम्मेदारी नहीं है क्या? इसको झंझट भरा मानकर क्या परमात्मा द्वारा दिए गए तोहफे का अपमान नहीं कर रहे हो। कोई आपको खूबसूरत तोहफा दे और आप उसे यह कहो कि आपने मुझे यह क्या झंझट भरा तोहफा दे

मित्रता में केवल प्रेम भावना ही होनी चाहिए mitrata mein keval Prem Bhavna hi honi chahie

भगवान महावीर से जब पूछा गया कि व्यक्ति किसे अपना मित्र बनाएं, किसके साथ अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाएं तो महावीर ने कहा था - - सत्वेसु मैत्री - तुम उनके साथ मित्रता करो, जिनके जीवन में सत्व हो, यथार्थ हो, जिनकी जिंदगी दोहरी न हो, जो अच्छे संस्कारों से युक्त हो, जिनके जीवन में धर्म और अध्यात्म के लिए जगह हो। जो नेक दिल हो, बुरी आदतों से बचे हों, बुरे काम से डरते हो, अच्छे कामों में विश्वास करते हो। मित्र का चयन मौज - मस्ती के लिए न करें। हमारी मित्रता न तो स्वार्थ से जुड़े, न कामना से, न वासना से, न तृष्णा से। मित्रता केवल प्रेमभावना से जुड़े। मित्र वही जो एक दूसरे के बुरे वक्त में काम आ सके। ध्यान रखें कि मित्र का दृष्टिकोण आपके प्रति कैसा है। बचपन में जब मैं संस्कृत का अध्ययन कर रहा था तब मैंने पंचतंत्र की कहानियां पढ़ी थी। उन कहानियों में मित्रता से संबंधित कहानियां भी थी। बंदर और मगरमच्छ की कहानी आप सभी जानते हैं, जिसमें बंदर रोज मगरमच्छ को जामुन खिलाता और उसकी पत्नी के लिए भी दे देता। रोज मीठे - मीठे जामुन खाकर मगरमच्छ की पत्नी जिद कर बैठी की जिसके दिए जामुन इतने मीठे हैं, वह खुद कितना