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Showing posts from October, 2019

वास्तविक उम्र कितनी ? vastvik umra kitni ?

उम्र आयु सभी लेकर पैदा होते हैं, कोई कम या ज्यादा लेकर आता है। आयु के साथ छ: बातें जो उसे पूर्व जन्म से ही बन्ध कर ली वह भी साथ लेकर आता है। जाति, गति, स्थिति, अवगाहना, प्रदेश, अनुभाग ये छ: बातें लेकर पैदा होते हैं। जाती पंचेइंद्रिय, गति यानी मनुष्य, स्थिति यानी आयु, अवगाहना यानी शरीर, शरीर की लंबाई, प्रदेश अनुभाग यानि किस तरह के पुद्गगल। इस तरह ये बातें तो लेकर आए हैं। पर आयु को किस तरह पूरी की पशु की तरह मनुष्य की तरह ? कर्मों के सहयोग से जीव मूढ है, दु:खी है, बहुत सी वेदनाओं से युक्त मनुष्य योनि को छोड़कर अन्य योनियों में प्राणी अधिक दु:ख भोंगते हैं। असली आयु कितनी जिये ? मनुष्य योनि में ही धर्म ध्यान कर सकता है, बाकी मैं नहीं कर सकता। एक मुसाफिर घूमते - घूमते अंजान गांव में गया। वहां के शमशान भूमि से जब गुजरा तो उसने एक विचित्र बात देखी वहां पत्थर की पट्टियों पर मृतक की आयु लिखी थी। किसी पर छ: महीने, तो किसी पर दस वर्ष, तो किसी पर इक्कीस वर्ष लिखा था। वह सोचने लगा कि इस गांव के लोग जरूर अल्पायु होते हैं। सबकी अकाल ही मृत्यु होती है। जब वह गांव के भीतर गया तो लोगों ने उसका खूब स्व

लोग क्या कहेंगे, लोगों का काम है कहना। Log kya kahenge logon ka kaam hai kahana.

दुनिया से बात करने के लिए फोन की जरूरत होती है, प्रभु से बात करने के लिए मौन की जरूरत होती है। फोन से बात करने के लिए बिल देना पड़ता है, ईश्वर से बात करने के लिए दिल देना पड़ता है। आप किस को राजी करना चाहते हो आपके पास वाले को या प्रभु को ? मेहनत ज्यादा किसमें लगानी पड़ती है ?हमेशा राजी कौन रह सकता है ? इन सब का जवाब खुद से पूछना। बौद्ध भिक्षुक किसी नदी के पनघट पर गया, पानी पी कर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर पनिहारी आती - जाती रहती हैं, तो तीन-चार पनिहारीने जल के लिए आई तो एक पनिहारीन ने कहा - आहा ! साधु हो गया फिर भी तकिए का मोह नहीं गया। पत्थर का ही सही लेकिन रखा तो है। पनिहारीन की बात साधु ने सुन ली। उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया। दूसरी बोली - साधु हुआ लेकिन खींज नहीं गई। अभी रोष नहीं गया तकिया पत्थर फेंक दिया। तब साधु सोचने लगा ? अब क्या करें ? तब तीसरी पनिहारी बोली - बाबा यह तो पनघट है यहां तो हमारी जैसी पनिहारी आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेगी। उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे ? लेकिन चौथी पनिहारी ने बहुत ही सुंदर और एक अद्भुत बात कह दी। साधु जी क्षमा कर

प्रतीक्षा कब तक करोगे ? PRATIKSHA KAB TAK KAROGE

एक संत बहुत दिनों तक नदी के किनारे बैठे थे। किसी ने उनसे पूछा आप नदी के किनारे बैठे - बैठे क्या कर रहे हो। संत ने कहा इंतजार कर रहा हूं, किसका इंतजार कर रहे हो। मैं नदी का जल पूरा का पूरा बह जाने का इंतजार कर रहा हूं। वह आदमी कहने लगा यह कैसे हो सकता है, नदी तो बहती ही रहती है। वह कभी पूरी बहेगी नहीं। पानी खत्म होगा तो बहाना बंद होगा। ठीक है, अगर सारा पानी बह भी जाए तो आप क्या करोगे। संत ने कहा मुझे दूसरे किनारे जाना है, सारा जल बह जाये तो में चलकर उस पार जाऊंगा। वह आदमी कहने लगा आप पागलों जैसी बातें कर रहे हैं, उस पार तो नाव से भी जा सकते हो। इंतजार करने की क्या जरूरत है। संत मुस्कुराकर कहने लगे - इंतजार करना मैंने तुम लोगों से ही सीखा है, तुम लोग हमेशा सोचते रहते हो कि जीवन में थोड़ी तकलीफ परेशानी कम हो जाए, काम से फुर्सत मिल जाए, थोड़ी शांति मिल जाए तो प्रभु स्मरण, सेवा, सत्कार्य कर लूंगा ! जीवन तो नदी की भांति है वह तो चलती रहेगी। जिस तरह से नदी को पार करने के लिए जहाज में बैठना पड़ता है, उसी तरह जीवन को सुंदर बनाने के लिए फुर्सत निकालकर प्रभु जप, सामायिक,तप, सामायिक दान, शील शुभ भ

कोई भी आदमी वैसा ही होता है, जैसे उसके विचार होते हैं। Koi bhi aadami vaisa hi Kota hai Jaise Uske vichar hote Hain.

अपने सफलता के अभियान की शुरुआत इस सच्चे, संजीदा विश्वास से कीजिए कि आप सफल हो सकते हैं। अगर आपको यकीन है कि आप महान बन सकते हैं तो आप सचमुच महान बन जाएंगे। अपने आप में विश्वास कीजिए और आपके साथ अच्छी घटनाएं होने लगेगीं। आपका दिमाग "विचारों की फैक्ट्री" है। यह एक व्यस्त फैक्ट्री है जो एक दिन में अनगिनत विचारों का उत्पादन करती है। जो लोग अवसर का भरपूर लाभ उठाते हैं वह ऐसे समझदार लोग होंगे जो यह सीख लेंगे कि बड़े सोच के सहारे खुद को सफलता के रास्ते पर किस तरह ले जाया जा सकता है। सफलता की तरफ यह आप का पहला कदम होगा। १) सफलता की बातें सोचें, असफलता की बात ना सोचे। २) अपने आपको बार-बार याद दिलाएं कि आप जितना समझते हैं आप उससे कहीं बेहतर हैं। ३) बड़ी सोच में विश्वास करें। आपकी सफलता का आकार कितना बड़ा होगा, यह आपके विश्वास के आकार से तय होगा। अपने को सिखाने का जिम्मा आप ही का है। कोई दूसरा आदमी आपके सिर पर खड़ा रहकर आपको यह नहीं बताएगा कि आपको क्या करना है, और कैसे करना है। आप और केवल आप ही खुद को समझ सकते हैं। केवल आप ही अपनी प्रगति का मूल्यांकन कर सकते हैं। जब आप अपने रास्ते

महामुनि इलाची कुमार की विरक्तता mahamuni ilayachi Kumar ki viraktata

इलावर्धन नाम का भव्य नगर ! प्राकृतिक सौंदर्य और संपत्ति से भरा पूरा नगर ! नाट्य कला में प्रवीण नटों का आगमन ! नाट्य कला के प्रदर्शन से संपूर्ण नगर वासी आकर्षित हो गए । रूपवती नट - कन्या को देखकर नगर सेठ के पुत्र इलाचीकुमार की आंखों में विकार पैदा हो गया और अंत में मन ही मन नट कन्या से पाणीग्रहण करने का निश्चय कर लिया। इलाची ने नट कन्या के पिता से कन्या की प्रार्थना की, परंतु नट - कन्या के पिता लंखिकर ने इस शर्त पर कन्यादान स्वीकार किया कि सर्वप्रथम तुम इस नट - विद्या को सिखकर किसी राजा को प्रसन्न करके इनाम प्राप्त करो। नट - कन्या में मोहित बने इलाची ने सभी शर्तें स्वीकार कर ली और माता-पिता और स्वजनों का विरोध होने पर भी उसने घर का त्याग कर दिया और नटों के समूहों के साथ रहकर नट विद्या सीखने लगा। नट - कन्या प्राप्ति की तीव्र उत्सुकता के कारण बारह वर्ष में इलाची नाट्य कला में इतना प्रवीण हो गया कि गुलाब के बाग की सुगंध की भांति चारों और दूर-दूर उसकी कीर्ति फैलने लग गई। उसकी नट विद्या के प्रदर्शन को देखने के लिए चारों ओर से मानव समुदाय एकत्रित हो जाने लगा। अनेक नगरों में अपनी नट

न्याय संचित धन nyaay sanchit dhan

किसी गांव में "धन" नामक सेठ रहता था। उसके परिवार में मात्र तीन सदस्य थे। उसकी पत्नी धन्ना, पुत्र घनसार और खुद। धन सेठ लोभी और ध्रुर्त प्रकृति का था। गांव में भोली भाली प्रजा को वह व्यापार में ठगता था। अनाज में कंकर, गुड में मिट्टी, दाल में लकड़ी के छिलके आदि मिलाकर बेचता था। ग्रामीण उसकी चिकनी चुपड़ी बातों का विश्वास भी कर लेते थे। नई चीज को पुरानी और पुरानी चीज को नई बताकर ज्यादा मूल्य से चीज बेचता और वजन से भी लोगों को ठगता था। लोगों से ठगाई करके सेठ को ज्यादा रकम मिलती वह किसी न किसी कारण से नष्ट हो जाती, कभी आग लगने से, कभी चोरी से और कभी किसी अन्य कारणों से मगर नुकसान जरूर होता था। विधाता के विधान में अन्याय नाम की कोई चीज नहीं होती। जो जैसा करता है, उसे वैसा ही भुगतना पड़ता है। "सौ सुनार की एक लोहार की" सेठ ठग - ठग कर धन बटोरता है तो कुदरत अपना खेल दिखा भी देती है। सेठ को इस बात का ख्याल कभी नहीं आया। सेठ का फला फूला संसार था। उसके लड़के ने शादी की तो एक सदस्य और भी बढ़ा । सेठ की दुकान और घर एक ही मकान में था। इसीलिए दुकान में जो कोई बात होती घर तक सुनाई दे

ममता ही दु:खों का कारण है Mamta hi dukhon ka Karan hai.

भगवान महावीर स्वामी जी की वाणी भव के बंधन को तोड़ने वाली है, परंतु अभी तक इस वाणी से ने हमारे अन्तहृदय को स्पर्श नहीं किया है। यदि स्पर्श किया होता तो हमारी आत्मा जन्म मरण के दु:खों से मुक्त हो गई होती। संसार में दु:ख का कारण वस्तु और व्यक्ति नहीं परंतु दु:ख का कारण आसक्ति है, हमारी राग दशा है। मानव चाहे तो ममता के बंधन को तोड़ सकता है परंतु प्रयत्न ही नहीं करता। भ्रमर में ऐसी शक्ति है कि वह कठोर से कठोर लकड़ी को भी छेद सकता है परंतु वही भ्रमर जब कमल की कोमल पंखडियों में कैद हो जाता है तो उसे भेद कर बाहर नहीं निकल सकता। पराग के राग के कारण वह कैद में ही रहना पसंद करता है। उत्तराध्ययन में प्रभू वाणी कहती है…………….. " रागो य दोसो विय कम्म बीयं " राग और द्वेष कर्मबंध के बीज है। जब तक राग है तब तक कर्मबंध भी है। आज मानव को मृत्यु का दु:ख नहीं राग और ममता का दु:ख है। मरते तो दुनिया में बहुत हैं पर अपना व्यक्ति जब दुनिया से जाता है दुःख तभी होता है। एक बार एक सेठ का नौकर छुट्टी लेकर अपने घर गया। जब वापस आने लगा तो सोचा कि रास्ते में हमारे सेठ की बेटी का गांव आता है उसे भी मिलता जाऊ

दान - लक्ष्मी की शान ! Dan - Lakshmi ki shan.

लक्ष्मी का सच्चा उपयोग दान है। भोग अथवा नाश संपत्ति का अच्छा बुरा परिणाम है,ऐसा करने की अपेक्षा यों कहना चाहिए कि भोग पुण्यधीन संपत्ति का विवेकाहीन दुरुपयोग है जबकि नाश लक्ष्मी को अपने समझने वाले व्यक्ति की निर्बलता को चुनौती और उसके पुरुषत्व की स्पष्ट अवहेलना करना है। पुण्य के क्षीण होने पर संपत्ति स्वयंमेव चली जाती है या आयु पूर्ण होने पर लक्ष्मी का भोक्ता स्वयं चला जाता है - जो दोनों रीती से लक्ष्मी का नाश कहा जाता है। वस्तुत: ऐसा ना सुने स्वामी को गौरव, स्वमान या प्रतिष्ठा प्रदान करने वाला परिणाम नहीं परंतु लक्ष्मी के भोक्ता की यह एक विडंबना है। भोग या नाश - यह लक्ष्मी का वास्तविक दृष्टि से सच्चा फल नहीं है। त्याग अथवा सुपात्र में लक्ष्मी का दान तथा दया पात्र का उद्धार - यही लक्ष्मी का स्वपर उपकारक फल है। इसके लिए मतिसागर मंत्री के पुत्र सुमति का प्रसंग आता है जो विवेकी आत्मा के सुंदर कोटी की विचारणा का प्रतिबिंब है। सुमति विवेक संपन्न है। पूर्व की आराधना के कारण बाल्यकाल में शुभ - अशुभ के विवेक शक्ति उसमें विद्यमान है। दासी पुत्र होने से मंत्री उसे पढ़ाने के लिए गुप्त भोंयरे में