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Showing posts from October, 2020

महाभारत के अंत में महादेव शिव ने पांडवो को दिया था पुर्नजन्म का श्राप ? Mahabharat ki ant mein Mahadev Shiv ne pandavon ko diya tha punarjanm ka shrap

महाभारत युद्ध समाप्ति की ओर था , युद्ध के अंतिम दिन दुर्योधन ने अश्वत्थामा को कौरव सेना का सेनापति नियुक्त किया। अपनी आखरी सांसे ले रहा दुर्योधन अश्वत्थामा से बोला की तुम यह कार्य निति पूर्वक करो या अनीति पूर्वक पर मुझे पांचो पांडवो का कटा हुआ शीश देखना है। दुर्योधन को वचन देकर अश्वत्थामा अपने बचे कुछ सेना नायकों के साथ पांडवो के मृत्यु का षड्यंत्र रचने लगा। भगवान श्री कृष्ण यह जानते थे की महाभारत के अंतिम दिन काल जरूर कुछ ना कुछ चक़्कर जरूर चलाएगा। अतः उन्होंने महादेव शिव की विशेष आराधना आरम्भ कर दी। श्री कृष्ण ने भगवान शिव   की स्तुति करते हुए कहा हे ! आदिदेव महादेव शिव आप ही पुरे सृष्टि के सृजनकर्ता हो , विनाशकर्ता हो। सभी पापो से मुक्ति दिलाने वाले और अपने भक्तो पर शीघ्र प्रसन्न हो जाने वाले भोलेनाथ   में आपके चरणों में अपने शीश नवाता हु। हे ! देवादिदेव पांडव मेरे शरण में है अतः उनकी हर कष्टों से रक्षा करें। भगवान कृष्ण द्वारा स्वयं महादेव की स्तुति करने पर महादेव तुरंत नंदी में सवार होकर उनके समक्ष प्रकट हुए। तथा हाथ में त्रिशूल धारण किये पांडवो के शिविर के बाहर उनकी रक्षा करने लग

ज़िंदगी का कड़वा सच jindagi ka kadva sach

एक भिखारी था । वह न ठीक से खाता था , न पीता था , जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था । उसकी एक - एक हड्डी गिनी जा सकती थी । उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी । उसे कोढ़ हो गया था । बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था । एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था । भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता | उसका मन बहुत ही दु:खी होता । वह सोचता , वह क्यों भीख मांगता है ? जीने से उसे मोह क्यों है ? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते ? एक दिन उससे न रहा गया ? वह भिखारी के पास गया और बोला - बाबा , तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर भी तुम जीना चाहते हो तुम भीख मांगते हो , पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें अपने पास बुला ले ? भिखारी ने मुंह खोला - भैया तुम जो कह रहे हो , वही बात मेरे मन में भी उठती है । मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं , पर वह मेरी सुनता ही नहीं । शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं , जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था , लेकिन वह दिन भी आ सकता है , जबकि वे मेरी तरह हो सकते हैं । इसलिए किसी को

कैसे प्राप्त हुई रावण को सोने की लंका ? Kaise prapt Hui Ravan ko sone ki Lanka ?

रावण के सोने का महल धन सम्पदा से परिपूर्ण था पर क्या आप जानते है की रावण को ये सोने की लंका कैसे प्राप्त हुई । पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन कुबेर जो महान समृद्धि से युक्त थे वो अपने पिता के साथ बैठे थे। रावण ने जब कुबेर को देखा तो उसके मन में भी उसकी तरह ही समृद्ध बनने की इच्छा पैदा हुई। फिर रावण और उसके भाइयों ने तपस्या करनी आरम्भ कर दी , कुछ समय बाद रावण ने अपने मस्तक काट- काटकर अग्रि में आहूति दे दी। उसके इस अद्भुत कर्म से ब्रह्मजी बहुत संतुष्ट हुए और प्रसन्न होकर उन्होंने स्वंय उन्हें तपस्या करने से रोका और कहा कि मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं और आप वर मांगों और तप से निवृत हो जाओ। ब्रह्मजी ने वर देने से पहलें ये शर्त रखी कि एक अमरत्व को छोड़कर आप कुछ भी मांग सकते हो और तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी और रावण को कहा कि तुमने जिन सिरों की आहूति दी है वे सब तुम्हारे शरीर में जुड़ जाएंगे तथा तुम इच्छानुसार रूप धारण कर सकोगे। रावण ने कहा हम युद्ध में शत्रुओं पर विजयी हों और गंधर्व , देवता , असुर , यक्ष , राक्षस , सर्प , किन्नर और भूतों से मेरी कभी पराजय न हो। ब्रह्मा जी ने कहा की तुमने जिन

आत्मा की आवाज़ atma ki awaaz

  किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था । ब्राह्मण गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था। परमात्मा में आस्था रखने वाला था । वह रोज सवेरे उठ कर गंगा में नहाने जाया करता था। नहा धो कर पूजा पाठ किया करता था। रोज की तरह वह एक दिन गंगा में नहाने गया नहा कर जब वापस आ रहा था तो उसने देखा रास्ते में एक लिफाफा पड़ा हुआ है। उसने लिफाफा उठा लिया। लिफाफे को खोल कर देखा तो वह ब्राह्मण हक्का बक्का रह गया लिफाफे मे काफी सारे नोट थे। रास्ते में नोटों को गिनना ठीक न समझ कर उसने लिफाफा बंद कर दिया और घर की तरफ चल दिया। घर जाकर उसने पूजा पाठ करके लिफाफे को खोला । नोट गिनने पर पता चला की लिफाफे मे पूरे बीस हजार रूपये थे। पहले तो ब्राह्मण ने सोचा कि भगवान ने उस की सुन ली है। उसे माला माल कर दिया है । ब्राह्मण की ख़ुशी जादा देर रुक नहीं सकी। अगले ही पल उसके दिमाग में आया कि हो सकता है यह पैसे मेरे जैसे किसी गरीब के गिरे हों। शायद किसी ने अपनी बेटी की शादी के लिए जोड़ कर रख्खे हों। उसकी आत्मा ने आवाज दी कि वह इन पैसों को ग्राम प्रधान को दे आये। वह उठा और ग्राम प्रधान के घर की तरफ को चल दिया। अभी वह ग्राम

सुख और आनंद पाना चाहते हो तो वही दूसरे को भी देना सीखो sukh aur Anand Pana chahte ho to vahi dusre ko bhi dena sikho

एक व्यक्ति किसी प्रसिद्ध सूफी संत के पास धर्म संबंधी ज्ञान हासिल करने गया। उस फकीर की चारों ओर ख्याति थी। कहा जाता था कि उनके आशीर्वाद से बीमार लोग स्वस्थ हो जाते थे और बहुतों की परेशानियां दूर हो जाती थीं। दूर प्रांतों से दु:खी -‌ पीड़ित लोग उनके यहां दुआएं मांगते और प्रसन्न होकर जाते। जब वह व्यक्ति संत के पास पहुंचा तो उसने देखा कि संत के हाथ में एक टोकरी थी और वे उसमें से दाना निकालकर पक्षियों को चुगा रहे थे। परिंदे मजे में दाना चुग रहे थे। यह देख संत किसी बच्चे की तरह खुश हो रहे थे। इस तरह दाना चुगाते हुए लंबा समय बीत गया। संत ने उस व्यक्ति की ओर देखा तक नहीं। वह शख्स परेशान हो गया और जब वह संत की और बढ़ा , तो संत ने उसे बिना कुछ कहे उसके हाथ में टोकरी थमा दी और कहा - अब तुम पक्षियों के साथ मजे करो। वह व्यक्ति सोचने लगा , कहां मैं इनसे आध्यात्मिक साधना का रहस्य जानने आया हूं और ये हैं कि मुझे पक्षियों को दाना चुगाने को कह रहे हैं। संत ने उसके मन की बात पढ़ ली और बोले - स्वयं की परेशानियों को भुलाकर हर जीव को आनंद पहुंचाने का प्रयत्न ही जीवन की हर सिद्धि और आनंद का राज है।

छोटी सी बात chhoti si baat

वॉशिंगटन में एक बड़ी इमारत थी , जिसकी तीसवीं मंजिल पर हार्नवे नामक एक कंपनी का ऑफिस था। उसमें अनेक कर्मचारी काम करते थे। एक दिन इमारत की लिफ्ट खराब हो गई। उसे ठीक करने में काफी समय लगना था। हार्नवे के कर्मचारियों ने तब सीढ़ियों से दफ्तर पहुंचने का फैसला किया। हालांकि तीसवीं मंजिल पर सीढ़ियों से चढ़ना आसान नहीं था। कर्मचारियों को यह सोच - सोच कर पसीना आ रहा था कि इतनी सीढ़ियां वे कैसे चढ़ेंगे ? तभी एक कर्मचारी बोला , ' अगर हम सोचते - सोचते सीढ़ियां चढ़ेंगे तो थक जाएंगे। क्यों न हम मनोरंजक चुटकुले सुनाते व बातें करते हुए आगे बढ़ें। ' इस पर सब सहमत हो गए। सभी चुटकुले सुनाते हुए सीढ़ियां चढ़ने लगे। इन कर्मचारियों के बीच में कंपनी का चपरासी भी था। वह भी कुछ बोलना चाहता था , लेकिन जैसे ही वह बोलने के लिए अपना मुंह खोलता सभी उसे चुप करा देते और कहते , ' तुम बाद में बोलना। ' सत्ताइसवीं मंजिल की सीढ़ियां चढ़ते - चढ़ते सभी कर्मचारी चुटकुले सुना चुके थे। उनमें से एक वरिष्ठ कर्मचारी ने चपरासी से कहा , ' चल भाई , अब तू भी सुना। बड़ी देर से कुछ सुनाना चाह रहा था।

ईश्वर की मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं होता है ishwar ki marzi ke bagair kuchh Bhi Nahin hota hai

 बहुत समय पहले की बात है। एक शहर में एक दयालु राजा रहता था। उस के यहाँ रोज दो भिखारी भीख मांगने आया करते थे। उन में एक भिखारी जवान था और एक भिखारी बूढ़ा था। राजा उनको रोज रोटी और पैसा दिया करता था। भीख लेने के बाद बूढ़ा भिखारी कहता था ईश्वर देता है। जवान भिखारी कहता था हमारे महाराज की देन है। एक दिन राजा ने उन्हें आम दिनों से जादा धन दिया। छोटे भिखारी ने कहा हमारे महाराज की देन है‌। बूढ़े भिखारी ने कहा ईश्वर की देन है। यह सुन कर राजा को बहुत गुस्सा आया उसने सोचा इन का भरण पोषण तो मैं करता हूँ और यह भिखारी कहता है की ईश्वर की देन है। राजा ने छोटे भिखारी की और सहायता करने की सोची और अगले दिन राजा ने कहा आज तुम इस नए रस्ते से जाओगे लेकिन पहले छोटा भिखारी जाएगा बाद में बूढ़ा भिखारी जाएगा। यह कहते हुए राजा ने नए रस्ते में एक सोने से भरी थैली रखवा दी ताकि छोटे भिखारी को मिल सके। जब छोटा भिखारी इस नए रस्ते से जा रहा था तो उसने देखा की यह रास्ता काफी चौड़ा और समतल है। उसने सोचा इस रस्ते से में आँखें बंद कर के जा सकता हूँ। जहाँ पर राजा ने सोने की थैली रखी थी छोटा भिखारी वहां से आँखें बंद कर

संसार में किसी कि भी रचना व्यर्थ में नहीं की गई हैं sansar mein Kisi ki Bhi rachna vyrat mein Nahin ki gai hai

एक राज्य के नागरिक बहुत परेशान थे। पक्षी उनके खेत - खलिहान को बर्बाद कर दिया करते थे। एक बार राज्य की जनता अपना दुखड़ा लेकर वे राजा के पास पहुंचे। उनकी परेशानी सुन कर राजा भी क्रोधित हो उठा। उसने ऐलान किया कि राज्य के सारे पक्षियों को मार दिया जाए। और अब से जो सबसे ज्यादा पक्षी मारेगा , उसे पुरस्कृत किया जाएगा। अब क्या था ? होड़ मच गई पक्षियों को मारने की। उस साल खेत - खलिहान बच गए। धीरे - धीरे राज्य के सारे पक्षी समाप्त हो गए और लोगों ने राहत की सांस ली ! राज्य में उत्सव मनाया जाने लगा। लेकिन अगले वर्ष जब लोगों ने अपने खेतों में अनाज बोया तो आश्चर्य कि एक दाना भी न उगा ! उसका कारण यह था कि मिट्टी में जो कीड़े थे , उन्होंने बीज को ही खा लिया। पहले पक्षी ऐसे कीड़ों को खा जाया करते थे और फसल की रक्षा स्वयं ही हो जाती थी। लेकिन इस बार राज्य में कोई पक्षी ही नहीं बचा था , जो उन कीड़ों को नष्ट करता। उस साल फसल नहीं हुई। राज्य में त्राहि - त्राहि मच गयी , भुखमरी के हालात पैदा हो गए। लोग फिर राजा के पास पहुंचे। उनका दु:ख सुन कर राजा को अपने निर्णय पर भी अफसोस हुआ। उसने नया आदेश दिया कि अब

जब देवता हुए नारद से परेशान तथा बंद किये सभी स्वर्ग के द्वार ! Jab devta hue narad se pareshan tatha band ki sabhi swarg ke dwar !

एक बार सभी देवता नारद के विषय में चर्चा कर रहे थे। वे सभी नारद जी के बिना बुलाये कहीं भी बार - बार आ जाने को लेकर बहुत परेशान थे। उन्होंने निश्चय किया की वे अपने द्वारपालों से कहकर नारद जी को किसी भी दशा में अंदर प्रवेश नही करने देंगे और किसी न किसी बहाने से उन्हें टाल देंगे। अगले दिन नारद जी भगवान शिव के दर्शन हेतु कैलाश पर्वत पहुंचे परन्तु नंदी ने उन्हें बाहर ही रोक दिया। नंदी के इस तरह रोके जाने पर नारद आश्चर्यचकित होकर उनसे पूछने लगे आखिर आप मुझे अंदर प्रवेश क्यों नही करने दे रहे। तब नंदी ने उन्हें कहा की आप कहीं और जाकर अपनी वीणा बजाए भगवान शंकर अभी  ध्यान मुद्रा  में है , जिसे सुन नारद जी को क्रोध आ गया और वे  क्षीरसागर  भगवान विष्णु से मिलने पहुंचे। वहा पर भी बाहर ही उन्हें  पक्षिराज गरुड़  ने रोक लिया तथा अंदर प्रवेश नही करने दिया। इसी तरह नारद मुनि हर देवताओ के वहां गए परन्तु स्वर्ग के सभी द्वार उनके लिए बंद हो चुके थे। नारद मुनि इस घटना से बहुत परेशान हो गए तथा देवताओ से अपने अपमान का बदला लेने की सोचने लगे परन्तु उन्हें उस समय कोई मार्ग नही सूझ रहा था। इसतरह इधर - उधर भड़क

एक बच्चे की सीख ek bacche ki Sikh

बायजीद नाम का एक मुसलमान फकीर हुआ है। वह गांव से गुजर रहा था। सांझ का समय था , वह रास्ता भटक गया। तभी उसने एक बच्चे को हाथ में दीपक ले जाते हुए देखा। उसने बच्चे को रोककर पूछा , ' यह दीया किसने जलाया और इसे लेकर तुम कहां जा रहे हो ? ' बच्चे ने कहा , ' दीया मैंने ही जलाया है और इसे मैं मंदिर में रखने के लिए जा रहा हूं। ' बायजीद ने फिर पूछा , ' क्या यह पक्की बात है कि दीया तुमने ही जलाया है ? ' ज्योति तुम्हारे ही सामने जली है ? अगर ऎसी बात है तो तुम मुझे बताओ कि ज्योति कहां से आई और कैसे आई ? ' उस बच्चे ने बायजीद की ओर गौर से देखा और फिर फूंक मारकर दीये को बुझा दिया। दीया बुझाने के बाद उस बच्चे ने पूछा , ' अभी आपके सामने ज्योति समाप्त हो गई। वह ज्योति कहां गई और कैसे चली गई , कृपाकर आप मुझे समझाएं। ' बच्चे के इस प्रश्न से बायजीद अवाक् रह गया। उसने बच्चे से कहा , '‌ मुझे आज तक भ्रम था कि मैं ही जानता हूं कि जीवन कहां से आया और कहां चला गया। आज मुझे अपनी हकीकत का पता चला है। जो मैं गुरूओं और बड़े औलियों से नहीं सीख पाया , वह मैं तुमसे

मां ने दिया अद्भुत शिक्षाप्रद ज्ञान maa ne Diya adbhut shikshaprad gyan

राजा गोपीचंद का मन गुरु गोरखनाथ के उपदेश सुनकर सांसारिकता से उदासीन हो गया। मां से अनुमति लेकर गोपीचंद साधु बन गए। साधु बनने के बहुत दिन बाद एक बार वह अपने राज्य लौटे और भिक्षापात्र लेकर अपने महल में भिक्षा के लिए आवाज लगाई। आवाज सुन उनकी मां भिक्षा देने के लिए महल से बाहर आई। गोपीचंद ने अपना भिक्षापात्र मां के आगे कर दिया और कहा ,- ' मां मुझे भिक्षा दो। ' मां ने भिक्षा पात्र में चावल के तीन दाने डाल दिए। गोपीचंद ने जब इसका कारण पूछा तो मां बोली - ' तुम्हारी मां हूं। चावल के यह तीन दाने मेरे तीन वचन है। तुम्हें इसका पालन करना है। पहला वचन , तुम जहां भी रहो वैसे ही सुरक्षित रहो जैसे पहले मेरे घर पर रहते थे। दूसरा वचन , जब खाओ तो वैसा ही स्वादिष्ट भोजन खाओ जैसा राजमहल में खाते थे। तीसरा वचन , उसी प्रकार की निद्रा लो जैसी राजमहल में अपने आरामदेह पलंग पर लेते थे।' गोपीचंद इन तीन वचनों के रहस्य को नहीं समझ सके और कहने लगे - ' मां मैं अब राजा नहीं रहा तो सुरक्षित कैसे रह सकता हूं ? ' मां ने कहा - ' तुम्हें इसके लिए सैनिकों की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें क्रो

क्यों माना जाता है ओम को महामंत्र तथा क्या लाभ है इसके उच्चारण के kyon mana jata hai Om ko mahamantra tatha kya labh hai iske uchcharan ke

हिन्दू धर्म में पूरणो और वेदो  के अनुसार ॐ नमः शिवाय का मन्त्र खुद में इतना सर्वशक्तिमान , सर्वशक्तिशाली तथा सम्पूर्ण ऊर्जा का श्रोत है की मात्र इसके उच्चारण से ही समस्त दु:खो , कष्टो का विनाश होता है तथा हर कामना की प्रतिपूर्ति हो जाती है। ॐ अक्षर के बिना किसी घर की पूजा पूर्ण नही मानी जाती , आपने अक्सर धर्मिक जगह में हो रही कथाओ , पाठों व आरतियों  में ॐ का उच्चारण अवश्य ही सुना होगा । कहते है बिना ओम के सृष्टि की कल्पना भी नही करी जा सकती व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से सदा ओम की ध्वनि  निकलती है। ओम तीन अक्षरो अ , उ तथा म से मिलकर बना है जिनमे "अ " का अर्थ होता है उत्तपन होना , "उ " का अर्थ है उठना यानि विकास होना तथा "म " का अर्थ है मौन धारण करना यानी  ब्रह्मलीन  हो जाना। ओम अक्षर से कई दिव्य शक्तिया व बहुत गहरे अर्थ जुड़े हुए है जिसे अलग - अलग पुराणों व शास्त्रो में विस्तृत ढंग से बताया गया है। शिव पुराण में ओम को प्रणव नाम से पुकारा गया है  जिसमे "प्र " से अभिप्राय प्रपंच , न यानी नही , "वः " यानी तुम लोगो के लिए। इस तरह प्रणव शब्द का

कर्तव्य बोध होना अति आवश्यक है kartavya Bodh hona ati avashyak hai

एक किसान को विरासत में खूब धन - संपत्ति मिली। वह दिनभर खाली बैठा हुक्का गुड़गुड़ाता और गप्प हांकता रहता। रिश्तेदार और काम करने वाले नौकर - चाकर उसके आलस्य का लाभ उठाते और उसके माल पर हाथ साफ करने में लगे रहते। एक दिन उसका पुराना मित्र उससे मिलने आया। यह अव्यवस्था देखकर उसे कष्ट हुआ और उसने किसान को समझाने की कोशिश की , किंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ।तब उसने किसान मित्र से कहा कि वह उसे एक महात्मा के पास ले जाएगा जो उसे अमीर होने के नुस्खे बताएंगे। यह सुनकर वह तुरंत अपने मित्र के साथ उन महात्मा के पास जा पहुंचा। महात्मा ने किसान से कहा , ' हर दिन सूर्योदय से पहले एक श्वेत नीलकंठ खलिहान , गोशाला , घुड़साल और घर में चक्कर लगाता है और बहुत जल्दी गायब हो जाता है। उस नीलकंठ के दर्शन तुम्हारे धन - संपत्ति को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। ' अगले दिन किसान खुशी - खुशी सूर्योदय से पहले उठा और नीलकंठ की खोज में पहले अपने खेत गया। वहां उसने देखा कि उसका एक रिश्तेदार अनाज से बोरा भरकर ले जा रहा है। शीघ्र ही वह गोशाला पहुंचा तो देखा कि उसका नौकर दूध की भरी बाल्टी चुराकर अपने घर ले

मेहनत की कमाई mehnat ki kamai

एक सेठ थे। उनकी कोठी के बाहर सड़क के किनारे एक मोची बैठता था जो जूते मरम्मत करने के दौरान बीच - बीच में भजन या कोई गीत गुनगुनाता रहता था , लेकिन सेठ जी का ध्यान कभी मोची के गानों पर नहीं गया। एक बार सेठ जी बीमार पड़ गए। बिस्तर पकड़ लिया । घर में अकेले पड़े थे तो उन्हें मोची के भजन सुनाई पड़े। भजन सुनते -सुनते उनका मन अपने रोग की तरफ से हटकर मोची के गाने की तरफ चला गया। इससे सेठ जी को बहुत आराम मिला। उन्हें महसूस हुआ कि उनका दर्द कम हो गया है। एक दिन उन्होंने मोची को बुलाकर कहा , 'भाई तुम तो बहुत अच्छा गाते हो। ' मेरा रोग बड़े-बड़े डॉक्टरो से ठीक नहीं हो रहा था ,लेकिन तुम्हारा भजन सुनकर ठीक होने लगा है। उन्होंने मोची को पचास रूपये दिए। रूपये पाकर मोची बहुत खुश हुआ। लेकिन उसका मन काम में नहीं लगा। भजन गाना वह भूल ही गया। रात को घर गया तो उसे नींद नहीं आई। वह सोचने लगा कि इस पचास रूपये का क्या करूँ ,कहाँ संभाल कर रखूँ। मोची की दशा देखकर उसके ग्राहक भी उस पर नाराज होने लगे , क्योंकि वह ठीक से काम नहीं करता था। उधर भजन बंद होने से सेठ जी की हालत फिर बिगड़ने लगी। उनका पूरा ध्यान

शनि देव ने केवल अपनी छाया मात्र से किया देवराज इंद्र का घमंड चूर Shani Dev ne keval apni chhaya matra se Kiya devraj Indra ka ghamand choor

राजा होने के कारण  देवराज इंद्र  को अपने आप पर बहुत घमंड आ चूका था तथा अन्य देवताओ को वे अपने समक्ष तुच्छ समझते थे। अपनी राजगद्दी को भी लेकर वे इतने आशंकित रहते थे की यदि कोई  ऋषि मुनि   तपश्या  में बैठे तो वे आतंकित हो जाते थे , कहीं वो वरदान में त्रिदेवो से इन्द्रलोक का सिहासन ना मांग ले। ऐसे ही एक दिन अभिमान में चूर इंद्र देवता  स्वर्गलोक  में ही कहीं भ्रमण कर रहे थे की तभी उन्हें नारद जी उनकी ओर आते दिखाई दिए। नारद जी उनके समीप आते ही उनसे अन्य देवताओ के बारे में चर्चा करने लगे तथा उनकी महत्ता बताने लगे। इंद्र देवता को नारद मुनि की बात बिलकुल भी पसंद नही आयी और कहने लगे की आप मेरे सामने अन्य देवताओ की विशेषता बतलाकर मेरा अपमान करना चाहते है , आप से मेरी ख्याति सहन नही हुई जाती। इस पर  नारद मुनि  देवराज इंद्र से बोले की देवराज आप मेरी बातो को अपना अपमान न समझे , यह आप की भूल है और वैसे भी प्रशंसा उसकी की जाती है जो खुद पे घमंड छोड़ कोई प्रशंसनीय कार्य करे। इसे सुन इंद्र नारद मुनि से चिढ गए तथा बोले में समस्त देवो का राजा हुं , जिस कारण अन्य देवो को मेरे सामने झुकना ही पड़ेगा। म

विचारों के सहारे मन का मेला होना vicharon ke sahare Man Ka Mela hona

एक वृद्ध भिक्षु और एक युवा भिक्षु दोनों नदी किनारे से चले जा रहे थे , तभी उन्होंने देखा कि एक युवती नदी में डूब रही है और बचाओ बचाओ के लिए आवाज दे रही है। युवा भिक्षु तुरंत नदी में कुदा और युवती को नदी से बाहर निकाल लाया। इस तरह से उसने उस युवती को बचा लिया। इतने में वृद्ध भिक्षु गरम हो गए , अरे , तुमने उस महिला को छू लिया! अब मैँ तुम्हें बुद्ध से कहूँगा और तुम्हें दंड /प्रायश्चित दिलवाऊँगा दोनों बुद्ध के सामने पहुँचे । वृद्ध भिक्षु ने कहा , “भंते ! इसको दंड मिलना चाहिए। ” बुद्ध ने पूछा , क्यों? ” वृद्ध भिक्षु ने कहा , इस बात का कि इसने युवती को उठाकर नदी से बाहर रखा , इसने उसे छू लिया , इसका ब्रह्मचर्य नहीं रहा। इसलिए इसे प्रायश्चित्त मिलना चाहिए। ” बुद्ध ने कहा , प्रायश्चित्त पहले तुम ले लो। " “मैं , मैं किस बात का प्रायश्चित लूँ ? ”विस्मय से उसने पूछा। बुद्ध ने कहा , " इसने तो उस महिला को उठाकर वहाँ ही रख दिया पर तुम तो उसे अपने मानस में उठाकर यहाँ तक ले आए तुम्हारे मन में अभी भी यह है , तुम इतनी देर से उसे ढो रहे हो , इसने तो वहाँ रखा और भूल भी गया। सुनो , मैं तुम

अन्न का अपमान Anna ka apman

एक युवा भारतीय अमीर अपने मित्रों सहित मौज-मस्ती के लिए जर्मनी गया। उनकी नजर में जर्मनी एक विकसित देश था, इसलिए वहां के लोग विलासिता का जीवन जीते थे। डिनर के लिए वे एक रेस्त्रां में पहुंचे। वहां एक मेज पर एक युवा जोड़े को मात्र दो पेय पदार्थ और दो व्यंजन के साथ भोजन करते देख उन्हें बड़ा अचम्भा हुआ। सोचा , यह भी कोई विलास है ? एक अन्य टेबल पर कुछ बुजुर्ग महिलाएं भी बैठी थी। वेटर ,डोंगा लेकर टेबल पर आकर हर प्लेट में जरूरत के अनुसार चीजें डाल जाता। कस्टमर अपनी प्लेट में कोई जूठन नहीं छोड़ रहे थे। भारतीय युवकों ने भी ऑर्डर दिया , परंतु खाने के बाद आदतन ढेरों जूठन छोड़ दी। बिल देकर चलने लगे तो बुजुर्ग महिलाओं ने युवकों से शालीनता से कहा ,' आपने काफी खाना बर्बाद किया है ,ये अच्छी बात नहीं है। आपको जरूरतभर ही खाना ऑर्डर करना चाहिए था। ' युवकों ने गुस्से में कहा ,' आपको इससे क्या कि हमने कितना ऑर्डर किया ? कितना खाया और कितनी जूठन छोड़ी ? हमने पूरे बिल का भुगतान किया है...। ' नोंकझोंक के बीच एक महिला ने कहीं फोन किया और चंद मिनटों में ही सोशल सिक्योरिटी विभाग के दो अफसर वहां आ पह

सोने जैसा जीवन sone jaisa Jeevan

अर्जनगढ़ के राजा अर्जन सिंह कपिल मुनि के आश्रम में नियमित रूप से आते - जाते रहते थे। कपिल मुनि अत्यंत ज्ञानवान , विवेकशील और गुणवान थे। वह अपने पास आने वाले सभी व्यक्तियों की समस्याओं को सुलझाया करते थे। एक दिन राजा ने गौर किया कि एक निपट देहाती और अनपढ़ व्यक्ति कपिल मुनि के पास नियमित रूप से आता है और कपिल मुनि अत्यंत तन्मयता के साथ उससे बातें करते हैं। यहां तक कि उससे बातें करते समय कई बार वह राजा को भी अनदेखा कर देते हैं। एक अत्यंत साधारण व्यक्ति के साथ कपिल मुनि की आत्मीयता राजा को रास नहीं आई। वह उनसे बोले , ' महाराज , मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं । ' कपिल मुनि बोले , ' पूछो वत्स , क्या जानना चाहते हो? ' राजा बोले , ' आप अत्यंत ज्ञानी और अनुभवी हैं। आपके पास बड़े - बड़े लोगों का आना जाना लगा रहता है। ऐसे में आपको शास्त्र ज्ञान से रहित साधारण और अनपढ़ लोगों में ऐसी क्या विशेषता नजर आती है कि आप उनके साथ बातें करते हुए सबको भूल जाते हैं। ' इस पर कपिल मुनि बोले , ' तुम्हारे मुकुट पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मुकुट किस धातु का बना है ? &

शिल्पकार का अभिमान shilpkar ka abhiman

कलाप्रस्तर नामक एक मूर्तिकार बेहद सुंदर मूर्तियां बनाया करता था। उसने अपने बेटे अहं को भी मूर्तिकला का ज्ञान देना शुरू किया। कुछ वर्षों में बेटा भी मूर्तियां बनाने में निपुण हो गया। अब पिता - पुत्र दोनों बाजार जाते और मूर्तियां बेचकर आ जाते। कुछ समय बाद प्रस्तर ने अहं की मूर्तियों को अलग से बेचना शुरू कर दिया। अहं की मूर्तियां प्रस्तर की मूर्तियों से ज्यादा दामों पर बिकने लगीं। एक रात अहं जब मूर्ति बना रहा था तो प्रस्तर उसकी मूर्ति को देखते हुए उसमें कमी बताने लगा। पिता को मूर्ति में जगह - जगह कमी बताते देख अहं खीज गया। वह चिढ़कर बोला , ' पिताजी , आपको तो मेरी मूर्ति में दोष ही नजर आता है। यदि मेरी मूर्ति में कमी होती तो आज मेरी मूर्ति आपसे ज्यादा कीमत में नहीं बिकती। ' बेटे की बातें सुनकर पिता दंग रह गया। वह चुपचाप अपने बिस्तर पर आकर लेट गया। कुछ देर बाद अहं को लगा कि उसे पिता से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी। वह पिता के पैरों के पास आकर बैठ गया। अहं के आने की आहट से प्रस्तर उठ बैठा और बोला , ' बेटा , जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मुझे भी अभिमान हो गया था। उस सम

देनेवाला जब भी देता , देता छप्पर फाड़ के dene wala jab Bhi deta , deta chappar phadke

  एक गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था , वह बहुत ही ईमानदार और भोला-भाला था , वह सदा ही दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहता था। एक बार की बात है कि शाम के समय वह दिशा मैदान (शौच) के लिए खेत की ओर गया , दिशा मैदान करने के बाद वह ज्योंही घर की ओर चला त्यों ही उसके पैर में एक अरहर की खूँटी (अरहर काटने के बाद खेत में बचा हुआ अरहर के डंठल का थोड़ा बाहर निकला हुआ जड़ सहित भाग) गड़ गई , उसने सोचा कि यह किसी और के पैर में गड़े इससे अच्छा है कि इसे उखाड़ दूँ । उसने जोर लगाकर खूँटी को उखाड़ दिया , खूँटी के नीचे उसे कुछ सोने की अशरफियाँ दिखाई दीं , उसके दिमाग में आया कि यह पता नहीं किसका है ? मैं क्यों लूँ ? अगर ये अशरफियाँ मेरे लिए हैं तो जिस रामजी ने दिखाया है ‌, वह घर भी पहुँचाएगा। इसके बाद वह घर आकर यह बात अपने पत्नी को बताई , रामू की पत्नी उससे भी ज्यादा भोली थी , उसने यह बात अपने पड़ोसी को बता दी। पड़ोसी बड़ा ही घाघ था , रात को जब सभी लोग खा-पीकर सो गए तो पड़ोसी ने अपने घरवालों को जगाया और कहा  - चलो,  "हमलोग अशरफी खोद लाते हैं ” पड़ोसी और उसके घरवाले कुदाल आदि लेकर खेत मे

कछुआ मुझे सदैव ही प्रेरणा देता हैं kachhua mujhe sadaiv hi prerna deta hai

एक साधु गंगा किनारे झोपड़ी बनाकर रहते थे। सोने के लिए बिस्तर , पानी पीने के लिए मिट्टी का घड़ा और दो कपड़े- बस , यही उनकी जमा-पूंजी थी। उन्होंने एक कछुआ पाल रखा था। सुबह स्नान कर वे पास की बस्ती में जाते और वहां कोई न कोई गृहस्थ उन्हें रोटी दे देता। कछुए के लिए वे थोड़े चने भी मांग लेते थे। वे रोटी खाते और कछुआ भीगे चने खाता। उनकी पहचान उस कछुए से हो गई थी। बहुत से लोग उन्हें कछुआ वाला बाबा भी कहते थे। पर , एक दिन एक व्यक्ति ने उनसे पूछा - आपने यह गंदा जीव क्यों पाल रखा है ? इसे गंगा में डाल दीजिए। उस व्यक्ति की बात सुनकर साधु बोले - कृपया ऐसा न कहें। इस कछुए को मैं अपना गुरु मानता हूं। साधु की बात सुनकर व्यक्ति हंसते हुए बोला- भला कछुआ भी किसी का गुरु बन सकता है? साधु बोले- देखो , किसी तरह की आहट पाकर या किसी के स्पर्श से यह अपने सभी अंग भीतर भीतर समेट लेता है। मनुष्य को भी इस प्रकार लोभ‌ , हिंसा आदि दुर्गुणों से स्वयं को बचाकर रखना चाहिए। ये चीजें उसे कितना भी आमंत्रण दें , किंतु इनसे अप्रभावित रहना चाहिए। इस कछुए को जब-जब देखता हूं , मुझे यह बात याद आ जाती है। यह कछुआ मुझे

इंसानियत का होना धर्म के आडंबर से महान है insaniyat Ka Hona dharm ke adambar se mahan hai

एक विशाल मंदिर था। उसके प्रधान पुजारी की मृत्यु के बाद मंदिर के प्रबंधक ने नए पुजारी की नियुक्ति के लिए घोषणा कराई और शर्त रखी कि जो कल सुबह मंदिर में आकर पूजा विषयक ज्ञान में अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करेगा , उसे पुजारी रखा जाएगा। यह घोषणा सुनकर अनेक पुजारी सुबह मंदिर के लिए चल पड़े। मंदिर पहाड़ी पर था और पहुंचने का रास्ता कांटों व पत्थरों से भरा हुआ था। मार्ग की इन जटिलताओं से किसी प्रकार बचकर ये सभी मंदिर पहुंच गए। प्रबंधक ने सभी से कुछ प्रश्न और मंत्र पूछे। जब परीक्षा समाप्त होने को थी , तभी एक युवा पुजारी वहां आया। वह पसीने से लथपथ था और उसके कपड़े भी फट गए थे। प्रबंधक ने देरी का कारण पूछा तो वह बोला- घर से तो बहुत जल्दी चला था , किंतु मंदिर के रास्ते में बहुत कांटे व पत्थर देख उन्हें हटाने लगा , ताकि यत्रियों को कष्ट न हो। इसी में देर हो गई। प्रबंधक ने उससे पूजा विधि और कुछ मंत्र पूछे तो उसने बता दिए। प्रबंधक ने कहा - तुम ही आज से इस मंदिर के पुजारी हो। यह सुनकर अन्य पुजारी बोले - पूजा विधि और मंत्रों का हमें भी ज्ञान हैं। फिर इसे ही क्यों पुजारी बनाया जा रहा है ? इस में ऐस

परिश्रम और आस्था से संतुष्टि का व्यवसाय parishram aur aastha se santushti ka vyavsay

भक्त रैदास फटे जूते की सिलाई में ऐसे तल्लीन थे कि सामने कौन खड़ा है , इसका उन्हें भान भी न हुआ। आगंतुक भी कब तक प्रतीक्षा करता , उसने खांसकर रैदास का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। रैदास ने दृष्टि ऊपर उठाई सामने एक सज्जन थे। उन्हें देख वे हडबडा कर खड़े हो गए और विनम्रतापूर्वक बोले , क्षमा करें , मेरा ध्यान काम में था।   उसने रैदास से कहा , ‘ मेरे पास पारस है। मै कुछ आवश्यक कार्य से आगे जा रहा हूं। कहीं खो न जाए , इसलिए इसे अपने पास रख लें। मै शाम को लौटकर वापस ले लूंगा। इतना जरूर बता दूं कि पारस के स्पर्श से लोहा स्वर्ण में बदल जाता है। यदि आप चाहें तो अपनी रांपी को इसका स्पर्श कराकर सोने की बना सकते हैं। यह सज्जन और कोई नहीं देवराज इंद्र थे जो लम्बे समय से रैदास की भक्ति और निर्लोभी स्वभाव की चर्चा सुनते आ रहे थे। वे रैदास की भक्ति व स्वभाव की परीक्षा लेने के लिए वेश बदलकर उनके पास पहुंचे थे।      रैदास ने उनसे कहा , आप पारस निःसंकोच छोड़ जाएं , लेकिन इसके उपयोग की सलाह मैं स्वीकार करने में असमर्थ हूँ क्योंकि यदि मेरी रांपी सोने की बन गई तो वह झटके से मुड जाएगी। वहीं दिन भर की मजदूरी से

निंदा करने से दूसरों के साथ अपना भी नुकसान होता है ninda karne se dusron ke sath apna Bhi nuksan hota hai

एक विदेशी को अपराधी समझ जब राजा ने फांसी का हुक्म सुनाया तो उसने अपशब्द कहते हुए राजा के विनाश की कामना की। राजा ने अपने मंत्री से , जो कई भाषाओं का जानकार था , पूछा - यह क्या कह रहा है ? मंत्री ने विदेशी की गालियां सुन ली थीं , किंतु उसने कहा - महाराज ! यह आपको दुआएं देते हुए कह रहा है - आप हजार साल तक जिएं। राजा यह सुनकर बहुत खुश हुआ , लेकिन एक अन्य मंत्री ने जो पहले मंत्री से ईष्या रखता था , आपत्ति उठाई - महाराज ! यह आपको दुआ नहीं गालियां दे रहा है। वह दूसरा मंत्री भी बहुभाषी था। उसने पहले मंत्री की निंदा करते हुए कहा - ये मंत्री जिन्हें आप अपना विश्वासपात्र समझते हैं , असत्य बोल रहे हैं। राजा ने पहले मंत्री से बात कर सत्यता जाननी चाही , तो वह बोला - हां महाराज ! यह सत्य है कि इस अपराधी ने आपको गालियां दीं और मैंने आपसे असत्य कहा । पहले मंत्री की बात सुनकर राजा ने कहा - तुमने इसे बचाने की भावना से अपने राजा से झूठ बोला। मानव धर्म को सर्वोपरि मानकर तुमने राजधर्म को पीछे रखा। मैं तुमसे बेहद खुश हुआ। फिर राजा ने विदेशी और दूसरे मंत्री की ओर देखकर कहा - मैं तुम्हें मुक