किसी की आलोचना से या करने का कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि इससे सामने वाला व्यक्ति अपना बचाव करने लगता है, बहाने बनाने लगता है या तर्क देने लगता है।
आलोचना खतरनाक भी है क्योंकि इससे व्यक्ति का बहुमूल्य आत्मसम्मान आहात होता है, उसके दिल को ठेस पहुंचती है और वह आपके प्रति दुर्भावना रखने लगता है।
आलोचना से कोई सुधरता नहीं है, अलबत्ता संबंध जरूर बिगड़ जाता है।
"जितने हम सराहना के भूखे होते हैं, उतने ही हम निंदा से डरते हैं।"
आलोचना या निंदा से कर्मचारियों, परिवार के सदस्यों और दोस्तों का मनोबल कम होता जाता है और उस स्थिति में कोई सुधार नहीं होता, जिसके लिए आलोचना की जाती है।
हर गलत काम करने वाला अपनी गलती के लिए दूसरों को दोष देता है। परिस्थितियों को दोष देता है, परंतु खुद को दोष नहीं देता है। हम सब यही करते हैं।
जब हमारी इच्छा किसी की आलोचना करने की हो तो हमें यह अहसास होना चाहिए कि आलोचना लौटकर हमारे पास आ जाती है, यानी बदले में वह व्यक्ति हमारी आलोचना करना शुरू कर देता है।
किसी की आलोचना मत करो, ताकि आप की भी आलोचना न हो।
तीखी आलोचना और डांट - फटकार हमेशा बीमारी होती है और उनसे कोई लाभ नहीं होता।
क्या आप किसी को या किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसे आप बदलना सुधारना और बेहतर बनाना चाहते हो ?
यह बहुत ही अच्छा विचार है।
परंतु क्यों नहीं खुद से ही शुरुआत की जाए ? विशुद्ध स्वार्थी ढंग से सोचें तो भी दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारना हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद होगा। हां और कम खतरनाक भी।
"जब आपके खुद के घर की सीढ़ियां ही साफ ना हो तो अपने पड़ोसी की छत पर पड़ी बर्फ के बारे में शिकायत मत करो।"
लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम तार्किक लोगों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम भावनात्मक लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं जिनमें पूर्वाग्रह भी है खामियां भी हैं, गर्व और अहंकार भी है।
मैं किसी के बारे में बुरा नहीं बोलूंगा, और हर एक के बारे में अच्छा ही बोलूंगा।
कोई भी मूर्ख बुराई कर सकता है, निंदा कर सकता है, शिकायत कर सकता है।
और ज्यादातर लोग यही करते हैं।
परंतु समझने और माफ करने के लिए आप को समझदार और संयम होना पड़ता है।
महान व्यक्ति छोटे लोगों के साथ व्यवहार करने में अपनी महानता दिखाते हैं।
ज्यादातर मां - बाप अपने बच्चों की आलोचना करते हैं।
लोगों की आलोचना करने की बजाय हमें उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिएं।
हमें यह पता लगाना चाहिए कि जो काम वे करते हैं, उन्हें वे क्यों करते हैं। यह आलोचना करने से बहुत ज्यादा रोचक और लाभदायक होगा। इससे सहानुभूति, सहनशक्ति और दयालुता का माहौल भी बनेगा।
"सबको समझ लेने का मतलब है सबको माफ कर देना।"
आलोचना खतरनाक भी है क्योंकि इससे व्यक्ति का बहुमूल्य आत्मसम्मान आहात होता है, उसके दिल को ठेस पहुंचती है और वह आपके प्रति दुर्भावना रखने लगता है।
आलोचना से कोई सुधरता नहीं है, अलबत्ता संबंध जरूर बिगड़ जाता है।
"जितने हम सराहना के भूखे होते हैं, उतने ही हम निंदा से डरते हैं।"
आलोचना या निंदा से कर्मचारियों, परिवार के सदस्यों और दोस्तों का मनोबल कम होता जाता है और उस स्थिति में कोई सुधार नहीं होता, जिसके लिए आलोचना की जाती है।
हर गलत काम करने वाला अपनी गलती के लिए दूसरों को दोष देता है। परिस्थितियों को दोष देता है, परंतु खुद को दोष नहीं देता है। हम सब यही करते हैं।
जब हमारी इच्छा किसी की आलोचना करने की हो तो हमें यह अहसास होना चाहिए कि आलोचना लौटकर हमारे पास आ जाती है, यानी बदले में वह व्यक्ति हमारी आलोचना करना शुरू कर देता है।
किसी की आलोचना मत करो, ताकि आप की भी आलोचना न हो।
तीखी आलोचना और डांट - फटकार हमेशा बीमारी होती है और उनसे कोई लाभ नहीं होता।
क्या आप किसी को या किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसे आप बदलना सुधारना और बेहतर बनाना चाहते हो ?
यह बहुत ही अच्छा विचार है।
परंतु क्यों नहीं खुद से ही शुरुआत की जाए ? विशुद्ध स्वार्थी ढंग से सोचें तो भी दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारना हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद होगा। हां और कम खतरनाक भी।
"जब आपके खुद के घर की सीढ़ियां ही साफ ना हो तो अपने पड़ोसी की छत पर पड़ी बर्फ के बारे में शिकायत मत करो।"
लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम तार्किक लोगों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम भावनात्मक लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं जिनमें पूर्वाग्रह भी है खामियां भी हैं, गर्व और अहंकार भी है।
मैं किसी के बारे में बुरा नहीं बोलूंगा, और हर एक के बारे में अच्छा ही बोलूंगा।
कोई भी मूर्ख बुराई कर सकता है, निंदा कर सकता है, शिकायत कर सकता है।
और ज्यादातर लोग यही करते हैं।
परंतु समझने और माफ करने के लिए आप को समझदार और संयम होना पड़ता है।
महान व्यक्ति छोटे लोगों के साथ व्यवहार करने में अपनी महानता दिखाते हैं।
ज्यादातर मां - बाप अपने बच्चों की आलोचना करते हैं।
लोगों की आलोचना करने की बजाय हमें उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिएं।
हमें यह पता लगाना चाहिए कि जो काम वे करते हैं, उन्हें वे क्यों करते हैं। यह आलोचना करने से बहुत ज्यादा रोचक और लाभदायक होगा। इससे सहानुभूति, सहनशक्ति और दयालुता का माहौल भी बनेगा।
"सबको समझ लेने का मतलब है सबको माफ कर देना।"
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