इस संसार में मेरा कोई नहीं है और मैं किसी का नहीं हूं। यह विचार करना एकत्व भावना है। हजारों लोग ट्रेन में आपके साथ होने के बावजूद भी अपना कोई न हो और यदि कोई आपसे पूछे कि आपके साथ कौन-कौन हैं ? आप यही कहेंगे कि मैं अकेला आया हूं। इसी प्रकार जीव संसार में स्वजन आदि के साथ रहते हुए भी किसी के ममत्व में न फॅसकर एकत्व भावना से रहें। क्योंकि जीव अकेला आया है और अकेला ही जाने वाला।
सलीम रोज खुदा को प्रार्थना करता है कि मुझे सौ सोना मुहर देना यदि एक भी कम की तो मैं नहीं लूंगा।उसके पड़ोसी ने परीक्षा करने के लिए उसे नब्बे सोना मुहर दी और उसने ले ली।तब पड़ोसी ने कहा - "तूने तो खुदा से कहा था कि एक भी सुना मोहर्रम होगी तो मैं नहीं लूंगा फिर अभी क्यों ले ली ?"
सलीम ने कहा "इससे तुम्हें क्या मतलब ?" इस बात पर दोनों के बीच बहुत झगड़ा हुआ। तब पड़ोसी ने कहा कि, काजी के पास चलो वही हमारा न्याय करेंगे। तब सलीम ने कहा, नहीं, मैं नहीं आऊंगा, क्योंकि मेरे कपड़े अच्छे नहीं हैं, तब पड़ोसी ने उसे कपड़े लाकर दिए। तब सलीम ने पगड़ी मोजड़ी मांगी। पड़ोसी ने वह भी लाकर दिए, तब सलीम ने घोड़ा मांगा। पड़ोसी ने उसे घोड़ा भी लाकर दिया। दोनों काजी के पास पहुंचे। पड़ोसी ने अपनी नब्बै सोना मोहर वापसी दिलाने की फरियाद रखी।
तब सलीम ने कहा, इसे वायुप्रकोप नामक रोग हुआ है, इसीलिए यह सभी वस्तुओं को मेरी मेरी कहता है। आपको यदि मेरी बात पर विश्वास ना हो तो इसी से पूछ लो कि यह कपड़े किसके ? पगड़ी, मोजड़ी किसकी ? घोड़ा किसका ? जब काजी ने पूछा तब पड़ोसी ने कहा सब मेरा है यह सुनकर काजी ने उसे डांट कर निकाल दिया।
उस पड़ोसी की तरह हम लोगों को भी वायुप्रकोप का रोग हुआ है। इसीलिए जब भी हम को पूछा जाता है, कि यह कपड़े किसके तो हम कहेंगे मेरे। यह घर, तो मेरा। यह पत्नी तो मेरी। फ्रिज तो मेरा। अरे भाई यह सब हमारा नहीं है, यह सब तो कर्म का दिया हुआ है और आप और हम उसे मेरा मेरा कह रहे हैं। यही वायुप्रकोप रोग है। जिस प्रकार सूंठ लेने पर शरीर में वायु हो तो वह शांत हो जाती है, वैसे ही सभी वस्तु के प्रति ममत्व का भाव जो वायुप्रकोप रोग हुआ है, उसे दूर करने के लिए एकत्व भावना है। इस भावनाओं को भावित करने के बाद आपको लगेगा कि मकान, दुकान, कपड़े, गाड़ी, मोटर, पत्नी आदि कुछ भी मेरा नहीं है। मैं अर्थात एक शुद्ध आत्मा हूं और मेरा दर्शन, ज्ञान और चरित्र गुण है। यही एकत्व भावना है।
सलीम रोज खुदा को प्रार्थना करता है कि मुझे सौ सोना मुहर देना यदि एक भी कम की तो मैं नहीं लूंगा।उसके पड़ोसी ने परीक्षा करने के लिए उसे नब्बे सोना मुहर दी और उसने ले ली।तब पड़ोसी ने कहा - "तूने तो खुदा से कहा था कि एक भी सुना मोहर्रम होगी तो मैं नहीं लूंगा फिर अभी क्यों ले ली ?"
सलीम ने कहा "इससे तुम्हें क्या मतलब ?" इस बात पर दोनों के बीच बहुत झगड़ा हुआ। तब पड़ोसी ने कहा कि, काजी के पास चलो वही हमारा न्याय करेंगे। तब सलीम ने कहा, नहीं, मैं नहीं आऊंगा, क्योंकि मेरे कपड़े अच्छे नहीं हैं, तब पड़ोसी ने उसे कपड़े लाकर दिए। तब सलीम ने पगड़ी मोजड़ी मांगी। पड़ोसी ने वह भी लाकर दिए, तब सलीम ने घोड़ा मांगा। पड़ोसी ने उसे घोड़ा भी लाकर दिया। दोनों काजी के पास पहुंचे। पड़ोसी ने अपनी नब्बै सोना मोहर वापसी दिलाने की फरियाद रखी।
तब सलीम ने कहा, इसे वायुप्रकोप नामक रोग हुआ है, इसीलिए यह सभी वस्तुओं को मेरी मेरी कहता है। आपको यदि मेरी बात पर विश्वास ना हो तो इसी से पूछ लो कि यह कपड़े किसके ? पगड़ी, मोजड़ी किसकी ? घोड़ा किसका ? जब काजी ने पूछा तब पड़ोसी ने कहा सब मेरा है यह सुनकर काजी ने उसे डांट कर निकाल दिया।
उस पड़ोसी की तरह हम लोगों को भी वायुप्रकोप का रोग हुआ है। इसीलिए जब भी हम को पूछा जाता है, कि यह कपड़े किसके तो हम कहेंगे मेरे। यह घर, तो मेरा। यह पत्नी तो मेरी। फ्रिज तो मेरा। अरे भाई यह सब हमारा नहीं है, यह सब तो कर्म का दिया हुआ है और आप और हम उसे मेरा मेरा कह रहे हैं। यही वायुप्रकोप रोग है। जिस प्रकार सूंठ लेने पर शरीर में वायु हो तो वह शांत हो जाती है, वैसे ही सभी वस्तु के प्रति ममत्व का भाव जो वायुप्रकोप रोग हुआ है, उसे दूर करने के लिए एकत्व भावना है। इस भावनाओं को भावित करने के बाद आपको लगेगा कि मकान, दुकान, कपड़े, गाड़ी, मोटर, पत्नी आदि कुछ भी मेरा नहीं है। मैं अर्थात एक शुद्ध आत्मा हूं और मेरा दर्शन, ज्ञान और चरित्र गुण है। यही एकत्व भावना है।
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