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खाना-पीना,खेलना,वंश वृद्धि करना यह सभी कार्य तो पशु भी करते है।मनुष्य भी यहीं कार्य करे तो उसमें तथा पशु में अंतर क्या रहेगा। मानव-जीवन का लक्ष्य होना चाहिए परमात्मा का अनुभव करना, अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कर देना। मानव शरीर जो तुम्हें मिला है केवल भोग भोगने के लिए नहीं मिला है वरन् आप कौन हो इसकी पहचान कर सको तथा परमात्मा का अनुभव कर उसके साथ एकाकार हो सको ताकि तुम्हें मुक्ति प्राप्त हो जाए।





चौरासी लाख योनियों के पश्चात यह मानव जीवन मिला है इसको व्यर्थ जाने नहीं देना चाहिए। सभी से प्रेम करना है जब तुम आत्मा के संपर्क में कुछ क्षण के लिये ही आओगें तो तुम्हारे अंदर प्रेम का झरना बहने लगेगा तथा जो तुम्हारे अंदर प्रेम का झरना बहने लगेगा तथा जो तुम्हारे सम्पर्क में आएगा वह तुम्हारे अंदर प्रेम का जो झरना बह रहा है उसका अनुभव होगा।





जैसे चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है उसी प्रकार तुम्हारे मन से निकलने वाली प्रेम धारा तुम्हारे सम्पर्क में आने वाले को प्रभावित करेगी।





सभी संतो ने कहा प्रेम करो। प्रेम से परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। गोपियों ने केवल प्रेम से कृष्ण को प्राप्त किया। उनहोंने भगवान का अनुभव करने के लिए कोइ योग साधना नहीं की केवल कृष्ण से प्रेम किया तथा कृष्ण के परमात्मारूप का साक्षात्कार किया।





यदि आप प्रेम करना सीख जाओगे तो तुम्हे परमात्मा को तो अनुभव होगा साथ ही साथ भौतिक रूप से भी तुम सम्पन्न हो जाओगे। पुरे ब्रह्मांड़ में जो भी चाहोगे वह तुम्हे प्राप्त होगा। तुम हमेशा आनंदित रहोगे तथा स्वर्ग ही धरती पर उतर आएगा।





जब तुम आत्मा के संपर्क में आओगे तो तुम्हारे अंदर प्रेम जाग्रत हो जायेगा या तुम प्रेम करोगे तो प्रेम करते करते तुम परमात्मा का अनुभव करने लग जाओगे। प्रेम ऐसी सकारात्मक शक्ति है जो तुम्हारे मन के नकारात्मक भावों को समाप्त कर देगी। जैसे गुरूत्वाकर्षण शक्ति होती है तथा उसका प्रभाव प्रत्येक कण पर पड़ता है उसी प्रकार मन में प्रेम की शक्ति उत्पन्न होती है उसका प्रभाव प्रत्येक पर पड़ता है गुरूत्वाकर्षण शक्ति भी प्रेम की शक्ति का एक रूप है।





अगर प्रेम नहीं होता तो यह ब्रह्मांड़ नहीं होता। परमात्मा या प्रेम का नियम प्रत्येक सजीव व निर्जीव पर समान रूप से लागु होता है क्योकि वह सत्य है। दो परमाणु मिलकर अणु बनाते है तो उनमें प्रेम की शक्ति ही होती है।





एक परमाणु इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनावेशित हो जाता है। जबकि दुसरा परमाणु इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणावेशित हो जाता है तथा वह स्थायित्व प्राप्त करने के लिए अणु बनाता है । वह चाहता है कि अपने बाह्य कोण में इलेक्ट्रॉन पुरे कर ले ताकि वह स्थायित्व को प्राप्त कर सके।
इसके लिये वह इलेकेट्रॉन का साझा करता है यह प्रेम की शक्ति ही है। उसी प्रकार मानव व पशुओं में भी यह प्रेम की शक्ति होती है इसलिए सजीव,निर्जीव पर परमात्मा का एक ही नियम लागु होता है तथा वहीं सत्य है।





तुमको मानव जन्म मिला है यदि सुख व दुःख के चक्र में ही उलझे रहोगे तो क्या होगा।अभी सुखी हो तो दुख भी आयेगा परन्तु दुःख व सुख में समान भाव से रहे तथा सदैव आनंदित रहे तो ही मनुष्य जन्म सार्थक है। भगवान राम का जब राज्याभिषेक हो रहा था तो उन्हें सुख का अनुभव नहीं हो रहा था तथा तुरन्त उन्हें वन में जाना पड़ा तो वे दुखी भी नहीं हुए।
समभाव से रहना सदैव आनंद में रहना ही भक्ति है । सुख दुःख तो आते जाते रहते है।





खाना-पीना,खेलना,वंश वृद्धि करना यह सभी कार्य तो पशु भी करते है।मनुष्य भी यहीं कार्य करे तो उसमें तथा पशु में अंतर क्या रहेगा। मानव-जीवन का लक्ष्य होना चाहिए परमात्मा का अनुभव करना, अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कर देना। मानव शरीर जो तुम्हें मिला है केवल भोग भोगने के लिए नहीं मिला है वरन् आप कौन हो इसकी पहचान कर सको तथा परमात्मा का अनुभव कर उसके साथ एकाकार हो सको ताकि तुम्हें मुक्ति प्राप्त हो जाए।





चौरासी लाख योनियों के पश्चात यह मानव जीवन मिला है इसको व्यर्थ जाने नहीं देना चाहिए। सभी से प्रेम करना है जब तुम आत्मा के संपर्क में कुछ क्षण के लिये ही आओगें तो तुम्हारे अंदर प्रेम का झरना बहने लगेगा तथा जो तुम्हारे अंदर प्रेम का झरना बहने लगेगा तथा जो तुम्हारे सम्पर्क में आएगा वह तुम्हारे अंदर प्रेम का जो झरना बह रहा है उसका अनुभव होगा।





जैसे चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है उसी प्रकार तुम्हारे मन से निकलने वाली प्रेम धारा तुम्हारे सम्पर्क में आने वाले को प्रभावित करेगी।





सभी संतो ने कहा प्रेम करो। प्रेम से परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। गोपियों ने केवल प्रेम से कृष्ण को प्राप्त किया। उनहोंने भगवान का अनुभव करने के लिए कोइ योग साधना नहीं की केवल कृष्ण से प्रेम किया तथा कृष्ण के परमात्मारूप का साक्षात्कार किया।





यदि आप प्रेम करना सीख जाओगे तो तुम्हे परमात्मा को तो अनुभव होगा साथ ही साथ भौतिक रूप से भी तुम सम्पन्न हो जाओगे। पुरे ब्रह्मांड़ में जो भी चाहोगे वह तुम्हे प्राप्त होगा। तुम हमेशा आनंदित रहोगे तथा स्वर्ग ही धरती पर उतर आएगा।





जब तुम आत्मा के संपर्क में आओगे तो तुम्हारे अंदर प्रेम जाग्रत हो जायेगा या तुम प्रेम करोगे तो प्रेम करते करते तुम परमात्मा का अनुभव करने लग जाओगे। प्रेम ऐसी सकारात्मक शक्ति है जो तुम्हारे मन के नकारात्मक भावों को समाप्त कर देगी। जैसे गुरूत्वाकर्षण शक्ति होती है तथा उसका प्रभाव प्रत्येक कण पर पड़ता है उसी प्रकार मन में प्रेम की शक्ति उत्पन्न होती है उसका प्रभाव प्रत्येक पर पड़ता है गुरूत्वाकर्षण शक्ति भी प्रेम की शक्ति का एक रूप है।





अगर प्रेम नहीं होता तो यह ब्रह्मांड़ नहीं होता। परमात्मा या प्रेम का नियम प्रत्येक सजीव व निर्जीव पर समान रूप से लागु होता है क्योकि वह सत्य है। दो परमाणु मिलकर अणु बनाते है तो उनमें प्रेम की शक्ति ही होती है।





एक परमाणु इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनावेशित हो जाता है। जबकि दुसरा परमाणु इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणावेशित हो जाता है तथा वह स्थायित्व प्राप्त करने के लिए अणु बनाता है । वह चाहता है कि अपने बाह्य कोण में इलेक्ट्रॉन पुरे कर ले ताकि वह स्थायित्व को प्राप्त कर सके।
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विश्वास का महत्व। Vishwas ka mahatva.

जीवन में जो महत्व स्वास का है, समाज में वही महत्व विश्वास का है। विश्वास जीवन की स्वास है, विश्वास जीवन की आस है, विश्वास जीवन की प्यास है। दुनिया विश्वास पर टिकी है। जब तक विश्वास- है तब तक दुनिया है। विश्वास उठा यह दुनिया भी उठ जाएगी । लोग कहते हैं, पृथ्वी शेषनाग पर टिकी है लेकिन मैं कहता हूं कि दुनिया शेषनाग पर नहीं टिकी है, अपितु हमारे - तुम्हारे आपसी विश्वास पर टिकी है। विश्वास सृष्टि की बुनियाद है, श्रद्धा जीवन की नींव है। जीवन की इमारत श्रद्धा और विश्वास के मजबूत पायों पर ही तो खड़ी होती है। पति का पत्नी पर विश्वास है तो जीवन में खुशियां हैं। यह विश्वास टूटा और जीवन नर्क बन गया। बापका बेटे में और बेटे का बाप में विश्वास है तो रिश्तो में माधुर्य है, मिठास है। यह विश्वास उठा कि जीवन में कड़वाहट आई। मालिक का नौकर पर विश्वास न हो तो व्यापार ठप्प हो जाए और नौकर का मालिक पर से विश्वास जाता रहे तो सेवा एक पीड़ादाई बोझ बन जाएगी । स्मरण रहे संसार विश्वास से चलता है, धर्म श्रद्धा से चलता है और विज्ञान तर्क से चलता है। विज्ञान में श्रद्धा का कोई मूल्य नहीं ।

दुनिया की दस चंचल चीजें । Duniya ki Das Chanchal chinjhe.

असली समस्या मन है। इंद्रियां तो केवल स्विच है, मेन-स्विच तो मन ही है। जब कभी भी कोई विश्वामित्र अपनी तपस्या और साधना से फिसलता और गिरता है तो इसके लिए दोष हमेशा मेनका को दिया जाता है जबकि दोष ' मेनका' का नहीं, आदमी के ' मन- का 'है कोई भी आदमी मेनका के आकर्षण की वजह से नहीं, अपितु अपने मन की कमजोरी की वजह से गिरता है। मन बड़ा खतरनाक है। दुनिया से 10 चीजें चंचल है दस मकार चंचल है। आदमी का मन , मधुकर (भंवरा ),मेघ, मानिनी (स्त्री ),मदन (कामदेव), मरुत (हवा) मर्कट (बंदर), मां (लक्ष्मी), मद (अभिमान), मत्स्य - यह दस चीजें दुनिया में चंचल है, और इनमें भी आदमी का मन सर्वाधिक चंचल है । इस मन को समझना, समझाना बडी टेढ़ी खीर है। पल- पल में बदलता है, क्षण- क्षण में फिसलता है । एक पल में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ जाता है और अगले ही पल बंगाल की खाड़ी में उतर जाता है। आदमी का मन चंचल है। मन हमेशा नशे में रहता है । मन पर कई तरह का नशा चढ़ा है पद का नशा, ज्ञान का नशा, पैसे का नशा, प्रतिष्ठा का नशा, शक्ति का नशा, रूप का नशा, इस तरह दुनिया में सैकड़ों तरह के नशे है। जो मानव मन पर

मित्र बनाए नहीं अर्जित किए जाते हैं Mitra banaye Nahin arijit kiye jaate Hain

हमारे जीवन में कुछ रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं। मित्रता ऐसा ही रिश्ता है। कहते हैं मित्र बनाए नहीं जाते , अर्जित किए जाते हैं। ये रिश्ता हमारी पूंजी भी है , सहारा भी। आजकल दोस्ती के मायने बदल गए हैं तो इस रिश्ते की गहराई भी कम हो गई है। इस संसार में हम अपनी मर्जी से जो सबसे पहला रिश्ता बनाते हैं , वो मित्रता का रिश्ता होता है। शेष सारे रिश्ते हमें जन्म के साथ ही मिलते हैं। मित्र हम खुद अपनी इच्छा से चुनते हैं। जो रिश्ता हम अपनी पसंद से बनाते हैं , उसे निभाने में भी उतनी ही निष्ठा और समर्पण रखना होता है। आधुनिक युग में दोस्ती भी टाइम पीरियड का मामला हो गया है। स्कूली जीवन के दोस्त अलग , कॉलेज के अलग और व्यवसायिक जीवन के अलग। आजकल कोई भी दोस्ती लंबी नहीं चलती। जीवन के हर मुकाम पर कुछ पुराने दोस्त छूट जाते हैं , कुछ नए बन जाते हैं। दोस्ती जीवनभर की होनी चाहिए। हमारे पुराणों में कई किस्से मित्रता के हैं। कृष्ण-सुदामा , राम-सुग्रीव , कर्ण-दुर्योधन ऐसे कई पात्र हैं जिनकी दोस्ती की कहानियां आज भी प्रेरणादायी हैं। मित्रता भरोसे और निष्ठा इन दो स्तंभों पर टिकी होती है। कोई भी स्तंभ अपनी जगह स